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Monday 26 December 2011

नया साल आ गया


नया साल आ गया

खामोश बैठा था,
दिल भी कही और गुमनाम था l
ऐसे में अचानक हाथों में आपका कलाम आ गया l
पढ़कर आँखे नम हो गए,
और उसी के सहारे गुजार रहा था दिन,
आशा था दिल को तू आयेगी,
पर तू आई न,
और इस साल का आखिरी शाम आ गया l
याद कर ही रहा था मैं, बीती बातों को,
तभी दरवाजे पर दस्तक हुआ,
और आपका पैगाम आ गया l
मुरझाये फुल खिल गए इस दिल दीवाने का,
झूम उठा मन ये सोचकर,
की आपका सलाम आ गया l
प्यार का धुन था ऐसा की,
एक ही पंक्ति को पढ़ने में खोया हुआ था मन,
और पता नहीं चला,
कब ?
उस शाम की रात ढल गई l
सूरज नई किरणों के साथ उदय हुआ,
और खुशियों से भरा नया साल आ गया l


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Thursday 8 December 2011

ठंड आ रही है


ठंड आ रही है

वर्षा बीती ठंड आ रही है
जगह जगह से चुनावी गंध आ रही है
पुराने से पुराना कपड़ा भी अब सिल जायेगा
हर चौक चौराहे पर, मशाल थामे
घुसपैठियों का प्रतिनिधित्व मिल जायेगा
कही पर ओले पड़ेगें, कहीं पर कोहरा होगा
कहीं पर शतरंज की बिसात होगी
कहीं पर चाल दोहरा होगा
महंगें से महंगा अब गर्मी चाहिए
नंगे नाच नाचने वाला बेशर्मी चाहिए
ढक जायेगा तन कपड़ों से
सिहर जायेगा समाज दंगों और लफड़ों से
बच नहीं पायेगा कोई भी,
इसके कसते शिकंजे से
कोई छुड़ा नहीं पायेगा,
अपने आपको चुनावी पंजों से
सुन्न हो जायेगा तन, हाथ पैर ठिठुर जायेंगें
कही पर शकुनि होगा, कही विदुर कहलायेगें
भ्रष्टाचार चादरों में बंद आ रही है
चुपके से दबे पांव महाभारत की जंग आ रही है


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Tuesday 6 December 2011

पहचान बता दे


पहचान बता दे

अपने जहन को तलाश रहा हूँ,
मुझे कोई मेरा पहचान बता दे l
अख़बार पर तस्वीर छपे मेरा,
ऐसा करूँ, कोई काम बता दे l
मुझे भी मिल जायेगा,
तब रोजी रोटी,
मुझे भी मिल जायेगा,
तब रकम मोटी l
सोनिया सा आकर अटल हो जाऊ,
या कुछ दिनों के लिए,
बिग बी के घर सैटल हो जाऊ l
शाहरुख़, अक्षय, प्रियंका,
और बिपाशा हूँ,
उतरा हूँ बोरबेल पर,
फिर भी प्यासा हूँ l
लादेन हूँ मैं,
खेलूँगा अब मैं भी क्रिकेट,
बस मुझे अमेरिका सा,
कोई विकेट का नाम बता दे l
अपने जहन को तलाश रहा हूँ,
मुझे कोई मेरा पहचान बता देl


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पत्थर


पत्थर

पत्थर ये क्या बोल गया,
राज ये कैसा खोल गया l
जिस पर लगा उसका दिल डोल गया ll
रे बे से हुई शुरुआत l
अधिक बाद गई छोटी सी बात ll
दौड़कर एक घुस गया अपने घर l
दूजा समझा की वो गया है डर ll
पर सामने से जब उसने लाठी लाया l
लपककर दूजे ने पत्थर उठाया ll
लाठी को उसने चलाया l
दूजा पत्थर पर बल लगाया ll
गिर गया छुटकर लाठी उसके हाथों से,
हलक से दर्द भरी निकली चीख,
लगकर माथे पर पत्थर,
अपना निशां छोड़ गया l
किसकी गलती थी किसने मारा,
कौन जीता था कौन हारा l
किसने लिए किसका सहारा ll
पर जिस पर लगा पत्थर,
उसका दिल डोल गया l
पत्थर ये क्या बोल गया,
राज ये कैसा खोल गया ll


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सम्मान के योग्य है नारी


सम्मान के योग्य है नारी

सम्मान के योग्य है नारी l
अपने ही हक़ को देता है,
हो के हक़ के अधिकारी l
नमन तुझको ऐ नारी,
हम सबकी जो है महतारी l
नौ माह तक पेट में रख कर,
रक्षा कवच वो बन जाती है l
हमें जन्म देकर, नारी से माँ वो कहलाती है l
खुद वो भूखी रहकर,
हमें अपना दूध वो पिलाती है l
रात रात भर जाग जाग कर के,
लोरी गा हमें सुलाती है l
ममता का आँचल ओढाकर,
बड़ा हमें बनती है l
ज्ञान का हमें शिक्षा देकर,
प्रथम पाठशाला वो बन जाती है l
उसके थप्पड़ में भी प्यार छिपा होता है,
हमें गुमराह होने से जो बचाती है l
सम्मान के योग्य है नारी l
अपने ही हक़ को देता है,
हो के हक़ के अधिकारी l


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महसूस


महसूस
लगता है कुछ दिनों पहले मैं कुछ और था,
अब अपने आप से हीन महसूस क्यों करता हूँ l
घिस घिसकर धोया है, पवन जलसे मन को,
मन को पर अब भी मलिन महसूस क्यों करता हूँ l
ज्ञानी समझकर नेक सलाह लेने मेरे पास आते थे लोग,
फिर भी अपने आप को बुद्धिहीन महसूस क्यों करता हूँ l
हिंसा को छोड़कर, अहिंसा के मार्ग अपनाने को कहता,
निर्दयी होकर अपने आप को अब, दयाहीन महसूस क्यों करता हूँ l
दूसरो के दुखों को अपना दुःख समझकर दुखी होता,
दुखों को अपनाकर अब भी अब अपने आप को,
करुनाहीन महसूस क्यों करता हूँl
त्याग, निष्ठां और सदाचारी को सदा ही अपनाता,
नियमों में बंधकर भी अपने आप को अनुशासनहीन महसूस क्यों करता हूँ l
तलवार से बढ़कर, ताकत कलम में है,
इतनी शक्ति के रहेते, अपने आप को बलहीन महसूस क्यों करता हूँ l
खुशियाँ ही तो बांटा था, खुशियाँ पाने के लिए,
खुशियों के जगह अब जिन्दगी को गमगीन महसूस क्यों करता हूँ l
रिश्ता बना मेरे चरित्र से, सबसे सच्चे प्रेम का,
अपने आप को फिर भी शीलहीन महसूस क्यों करता हूँ l
सुखो के रंगों से भरा है सारी दुनियां,
जीवन को पर अब भी मैं रंगहीन महसूस क्यों करता हूँ l
नौ रसो के रस से सरोबोर है मेरा जीवन,
            अब नीरस सा जीवन को रसहीन महसूस क्यों करता हूँ l


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मन: पटल


मन: पटल

ख़ामोशी लिए,
मन देख रहा है l
पाशों की चाल वही,
सांसो में अटकी चीत्कार वही l
मिश्रित लावों को, फेंक रहा है,
मन देख रहा है l
पथराई सीप वही,
चातक की टीस वही l
तपती देह को सेंक रहा है,
मन देख रहा है l


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महबूब


                    महबूब
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll
वो हँसी दिलरुबा, दिलकशी होगी,
मेरा महबूब, मेरा हमदम महजबी होगी
आँख हो जिसके छलकते प्याले
जाम को जिसके, पीकर मैं झूमता हूँ
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll

होंठ जिसके खिलता कमल हो,
फुल से मैं प्यार को पूजता हूँ l
हँसने से जिसके बिखरे मोती,
मोती से मैं सपनों की माला संजोता हूँ l
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll

बिंदिया हो जिसके चाँद सितारे l
जिनसे बने सारे प्यारे नज़ारे l
जुल्फ हो जिसके काले काले l
ओढ़कर सोये जिसे उजाले l 

आवाज से जिसके मिठास टपके,
मिठास को मैं जीवन में घोलता हूँ l
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll

नख से शिख तक जिसके अदा ही अदा हो l 
अदा भी ऐसी, जो सबसे जुदा हो l
उस पर मेरा दिल फ़िदा हो l
ऐसे सपनों के परी को, मैं दिन में खोजता हूँ l
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll  


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इंतजार की घडी थी


                    इंतजार की घडी थी

दिन ढल गया था, शाम ढल गया था,
रात के आगोश में ठण्ड बहुत लग रही थी l
मैं स्वेटर के पीछे दुबका,
एकांत रास्ते पर जा रहा था,
जल्दी था मुझको,
पर बहुत दूर अभी चौराहा था l
सुनसान सडको पर,
चौराहे से होकर जाना पड़ता,
जाना जरुरी था,
इसलिए मरता क्या न करता l
नजर उठाकर चौराहे को देखा तो,
एक लड़की वहां खड़ी थी l
दुल्हन के जोड़े में लिपटी,
सचमुच हुश्न की वो परी थी l
हल्की ठंडी हवा के झोकों से,
उसके रेशमी बाल लहरा रही थी l
ये काली रात शायद उसके,
जुल्फ लहराने पर बनी थी l
मांथे पर बिंदिया ऐसा चमक रहा था l
जिससे मुझे दो दो चाँद का आभास हो रहा था l
आँचल का झिलमिलाना,
तारों की लुका छुपी लग रही थी l
दूर से देखा था उसने शायद मुझे,
तो एक पल के लिए मुस्कुरा ही पड़ी थी l
मैं भी मन ही मन अपने रूप रंग,
सुन्दरता पर गर्व कर रहा था l
कई सपने संजो लिया था मन में,
पर सब्र कर रहा था l
जैसे जैसे मैं पास जा रहा था,
वो आश्चर्य से मुझे देख रही थी l
शायद मैं वो नहीं था,
जिसके लिए वो वहां खड़ी थी l
मेरे सारे अरमां बिखर गए थे,
मैं निराश प्रेमी सा लग रहा था l
वो सर को झुकाए थी,
गम में भी मैं मंद मंद मुस्कुरा रहा था l
मैं अपने रास्ते जा रहा था,
और वो खामोश ही खड़ी थी l
वो काली रात शायद, उसके लिए,
इंतजार की घडी थी l


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गुरूजी हमें ये सिखाते


गुरूजी हमें ये सिखाते

नहा धोकर जब स्कुल जाते,
गुरूजी हमें ये सिखाते l
सदाचारी का पाठ पढ़ाकर,
बड़ो को नमस्कार करवाते l
कहते रोज तुम पढ़ने आना,
घर से पाठ रोज करके लाना l
अ, आ, इ, एक, दो, तीन,
हर रात का होता दिन l
जोड़, घटाव, गुणन और भाग,
सोया हुआ मनुष्य अब तो जाग l
हिंदी, गणित और विज्ञान,
तुमसे से बनेगा देश महान l
तुम सब हो होनहार छात्र,
भविष्य के प्रेरणा का पात्र l
पुस्तक में है देखो चित्र प्यारा,
जैसे भारत देश हमारा l
तिरंगा जब वो है फहराते,
भारत माता की जय करवाते l
गुरूजी हमें ये सिखाते,
गुरूजी हमें ये सिखाते l


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फ्रेंडशिप


फ्रेंडशिप

FRIENDSHIP


मन में जला के प्यार का दीप,
एक दुसरे को बना के चीफ ।।
चलो मनाएं फ्रेंडशिप,
चलो मनाएं फ्रेंडशिप ।।
मेरी खुशियाँ भी तेरे जीवन में,
हो जाए मिक्स।।
सारे दुख दूर हो और,
सारी खुशियों हो जाए फिक्स।।
चलो मनाएं फ्रेंडशिप,
चलो मनाएं फ्रेंडशिप ।।
दर्द तुझको हो तो,
मेरे हलक से निकले चींख।
तेरे सारे गम,
मुझ पर जाएँ बीत ।
चलो मनाएं फ्रेंडशिप,
चलो मनाएं फ्रेंडशिप ।।
न देना ग्रीटिंग्स,
न देना कोई गिफ्ट ।
प्यार, विश्वास अपनापन ही है,
दोस्ती का अच्छा टिप्स ।।
चलो मनाएं फ्रेंडशिप।
चलो मनाएं फ्रेंडशिप।।
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गोकुल कुमार पटेल


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आज कल की बात


आज कल की बात
कल ने कल की, की पहचान,
कल ने कल को दिया निशान l
कल फिर कल से क्यों है अनजान,
कल क्या कल से है बलवान l
कल ने आज का किया सम्मान,
आज ने कल को दिया बरदान l
कल ही आज है आज ही कल,
आज को फिर कल करता है क्यों बेदखल l
आज कल की परछाई है,
आज ही ने कल को बनाई है l
आज है कल की जान, जान है तो जहान,
कल से आज, आज से कल होता है महानl
कल कल की साज आज,
बनाये जो जागरूक समाज l


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