मुझे पप्पू बना दिया
नाम
कुछ और था, काम कुछ और था,
पर
सबने मिलकर ,
काम
कुछ और बता दिया,
नाम
कुछ और बता दिया l
चीखता
रहा चिल्लाता रहा,
पर
सबने मिलकर ,
आख़िरकार,
मुझे
अप्पू सा पप्पू बना दिया ll
फक्र
था मुझे भी, अपने चरित्र पर,
बनाना
चाहता था मैं भी,
समाज के लिए प्रेरक,
पर
सबने मिलकर,
न जाने
ये कौन सा, रास्ता सुझा दिया l
शर्मसार
हो रहा हूँ मैं,
सबने
मिलकर,
आख़िरकार,
मुझे
टपोरियों सा टप्पू बना दिया ll
स्वच्छ
मन था बातों में वजन था,
शब्दों
में जान थी समाज में मान था,
पर
अर्थ का अनर्थ बताकर ,
सबने
ये क्या पाठ पढ़ा दिया l
दोअर्थी
सी बातें है अब मेरी,
सबने
मिलकर,
आख़िरकार,
मुझे
गोल गोल घूमने वाला लट्टू बना दिया ll
चापलूसी
से दूर भागते भागते,
पिछड़ तो गया था मैं,
पर
आगे बढ़ने की होड़ में,
सबने
मिलकर,
आख़िरकार,
जी
हजुरी करने वाला,
आगे
पीछे घूमने वाला,
मुझे
चम्मचों सा चप्पू बना दिया ll
(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक
बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l)