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Wednesday 23 March 2016

होली कैसे मनाएँ

होली कैसे मनाएँ

जैसा की हम सभी जानते है प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षस राज हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे। प्रहलाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई। होलिका को आग से नहीं जलने का वरदान था। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका बालक प्रहलाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से आग में जा बैठी। पर प्रभु की कृपा से प्रहलाद को मारने के प्रयास में होलिका की मृत्यु हो गई। तभी से होली का त्यौहार मनाया जाने लगा। उस समय पूर्ण चन्द्रमा की पूजा करने की भी परंपरा थी। वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था। यह महिलाओं  व पुरुषों द्वारा सामान रूप से परिवार की सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता है और होली के दिन से आठ दिन पूर्व से ही होली की पूजा झंडा या डंडा गाड़कर किया जाता है। जिसके चारों तरफ होलिका की लकड़ी इकट्ठी की जाती है।


होलिका पूजन:- होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है पूजा पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके की जाती है । जिसमें एक लोटा जल, सिंदूर, चावल, पुष्प, सफ़ेद या पीले रंग से रंगा कच्चा सूत, साबुत हल्दी, मिठाई व बताशे, गुलाल, कच्चे आम, नारियल, सात प्रकार के धान्य ( गेहूँ, उडद, मूँग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि सामग्री की आवश्यकता होती है। सबसे पहले होलिका के चारों ओर कच्चे सूत को  तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटा जाता है। एक-एक करके सभी सामग्री होलिका को समर्पित कर पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है।  तत्पश्चात पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है। इस दिन होली में भरभोलिए (गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। नजर उतारने के लिए इस माला को  सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर होली में डाला जाता है।) होलिका पूजन के समय इस मंत्र का उच्चारण यथा शक्ति ग्यारह बार, इक्कीस बार, एक माला, तीन माला या  विषम संख्या के रुप में करना चाहिए :- 

'अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्’

पूजन के पश्चात् सभी सिंदूर का टीका लगाते है और घर के बुजुर्गों का चरण छूकर मंगलमय जीवन का आशीर्वाद लिया जाता है।


होलिका दहन: - होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों का अंत व अच्छाइयों का विजय का प्रतीक है। दिन ढलने पर ज्योतिषियों द्वारा निकाले मुहूर्त पर होली का दहन होली के गीत गाते हुए किया जाता हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन सुबह घर में लाने व राख का लेपन शरीर पर करने से शरीर के समस्त प्रकार के व्याधि और घर के सभी दुखोः व अशुभ शक्तियों का नाश होता है। राख का लेपन करते समय निम्न मंत्र का जाप करना कल्याणकारी रहता है:-   

‘वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रम्हणा शंकरेण च अतस्त्वं पाहि माँ देवी भूति भूतिप्रदा भव’



होली रंगोत्सव व मिलन समारोह:- होली का अगला दिन रंगोत्सव व धूलिवंदन कहलाता है। इस दिन सुबह होते ही सब अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं ईर्ष्या-द्वेष की भावना भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हुए गुलाल व रंग लगाकर मिठाई व पकवान बांटा जाता है।