महसूस
लगता है कुछ दिनों पहले मैं कुछ और था,
अब अपने आप से हीन महसूस क्यों करता हूँ l
घिस घिसकर धोया है, पवन जलसे मन को,
मन को पर अब भी मलिन महसूस क्यों करता हूँ l
ज्ञानी समझकर नेक सलाह लेने मेरे पास आते थे लोग,
फिर भी अपने आप को बुद्धिहीन महसूस क्यों करता हूँ l
हिंसा को छोड़कर, अहिंसा के मार्ग अपनाने को कहता,
निर्दयी होकर अपने आप को अब, दयाहीन महसूस क्यों करता हूँ l
दूसरो के दुखों को अपना दुःख समझकर दुखी होता,
दुखों को अपनाकर अब भी अब अपने आप को,
करुनाहीन महसूस क्यों करता हूँl
त्याग, निष्ठां और सदाचारी को सदा ही अपनाता,
नियमों में बंधकर भी अपने आप को अनुशासनहीन महसूस क्यों करता हूँ l
तलवार से बढ़कर, ताकत कलम में है,
इतनी शक्ति के रहेते, अपने आप को बलहीन महसूस क्यों करता हूँ l
खुशियाँ ही तो बांटा था, खुशियाँ पाने के लिए,
खुशियों के जगह अब जिन्दगी को गमगीन महसूस क्यों करता हूँ l
रिश्ता बना मेरे चरित्र से, सबसे सच्चे प्रेम का,
अपने आप को फिर भी शीलहीन महसूस क्यों करता हूँ l
सुखो के रंगों से भरा है सारी दुनियां,
जीवन को पर अब भी मैं रंगहीन महसूस क्यों करता हूँ l
नौ रसो के रस से सरोबोर है मेरा जीवन,
अब नीरस सा जीवन को रसहीन महसूस क्यों करता हूँ l
(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l )
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