पूजा से धर्म और सांस्कृतिक का बचाव नहीं होता अपितु पूजा से समृद्धि, के साथ साथ सात्विक विचारों की अभिब्यक्ति भी होती है l हिन्दू धार्मिक अनुष्ठानों में पूजा करने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार के देवी देवताओं को स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है l और उन्ही में से एक है कलश स्थापना और कलश पूजा करना l कलश को हम घड़ा, मटका, सुराही आदि नामों से जानते है l कलश को वैसे तो लक्ष्मी का रूप मानते है पर इसकी स्थापना एवं पूजा करने से सिर्फ लक्ष्मी की ही नहीं वल्कि आकाश, जल, थल एवं समस्त ब्रम्हांड की भी पूजा हो जाती है l जिससे हमारे विभिन्न प्रकार के दोषों का निवारण अपने आप ही हो जाता है और सौभाग्य एवं ऐश्वर्य में वृद्धि होने लगती है इसलिए घर में कलश की स्थापना करनी ही चाहिए l
v कलश
स्थापना के लिए तांबा व पीतल के कलश का इस्तेमाल भी कर सकते है पर कलश पृथ्वी का प्रतिक
होने के कारण लालिमा आभा लिए मिट्टी का कलश अधिक उपयुक्त है l कलश काला या दागदार नहीं
होने चाहिएl
v कलश
की स्थापना किसी भी धार्मिक अनुष्टान के समय, पूर्णिमा, अमावस्या या किसी भी शुभ तिथि
में की जा सकती है l
v कलश
स्थापना करने के लिए सर्व प्रथम कलश को स्वक्छ जल से अच्छी तरह धोकर पोछ लेवें l
v कलश
को वस्त्र पहनने के लिए कलश के गले में मौली (रक्षासूत्र ) को तीन बार लपेटना चाहिए
l
v सत्य
का सतत विकास की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करने वाला सतिया (स्वास्तिक ) का निशान
कलश के मध्य में रक्त चन्दन या सिंदूर से बनाने चाहिए l
v उत्तर-
पूर्व दिशा (ईशान कोण) में लक्ष्मी, कुबेर और जीवनदायनी जल का स्थान होने के कारण कलश
की स्थापना पूजा घर के ईशान कोण में करनी चाहिए l
v लकड़ी
के बजोट या आसन पर सफ़ेद कपड़ा बिछाकर चावल या रंगोली से नौ ग्रह का प्रतीकात्मक अष्टदल
बनाकर कलश को उसके ऊपर स्थापित करनी चाहिए l
v कलश
में गंगाजल, विभिन्न तीर्थ स्थलों के नदियों का जल या स्वक्छ जल भरना चाहिए l
v कलश
के अन्दर सर्वोषधि (दूब, वच, कुश, हल्दी, तुलसी आदि), पंचरत्न (सोना, चांदी, तांबा,
पीतल, लोहा ), गोल सुपारी, चावल के कुछ दाने, मधु, इत्र, सिंदूर, तांबे
का सिक्का या कोई भी एक या दो रुपये का सिक्का डालने चाहिए l
v कलश
के मुहं में समस्त शोक एवं दोषों के निवारण और दसों दिशाओं को इंगित करने के लिए अशोक
या आम का दस पत्ता लगाना चाहिए l
v कलश
का कटोरीनुमा ढक्कन जिसे पूर्णपात्र कहा जाता है, पूर्णपात्र में लक्ष्मी स्वरुपणी
धान डालकर कलश के मुंह को ढक देना चाहिए l
v नारियल
में लाल कपडे या मौली (रक्षासूत्र ) का धागा लपेट कर उसके ऊपर स्थापित करना चाहिए
l ध्यान रहे नारियल का नोकीला भाग आकाश तत्व को इंगित करता है इसलिए नोकीला भाग सदैव
ऊपर होने चाहिए l
v तत्पश्चात
धुप, दीप, फुल एवं मंत्रोपचार द्वारा विधि पूर्वक कलश का पूजन करना चाहिए l
v कलश
के पानी को कभी सूखने न दे, हो सके तो हर पूर्णिमा या किसी भी शुभ तिथि में कलश में
दोबारा विधिवत पानी भरने चाहिए l
(इन
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