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Thursday 6 July 2017

मेरा गांव बदल गया

मेरा गांव बदल गया
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आधुनिकता और नवनिर्माणों के आड़ में मेरा गांव बदल गया।
कल कारखानों के निर्माण से, पीपल का छाँव बदल गया।

वृक्षों के कटने से, चिडियों के बसेरे बदल गये।
चिडियों की चहचहाट भरी वो सबेरे बदल गये।।

ताजगी भरी सुबह की ताजी-ताजी हवा बदल गयी।
ममत्व और दुलार से पुकारती माँ की तवा बदल गयीं।।

सडक के निर्माण से गली बदल गयीं रास्ते बदल गये ।
पैकेटबंद खानो से सुबह के पौष्टिक नाश्ते बदल गये।।

नल के लगने से सत्कार करती पनीहारन की कुआं बदल गयी।
चिमनियों के लग जाने से आकाश की धुआं बदल गयी।।

ईट पत्थरों के जुडने से घर और मकान बदल गये।
दिखावेपन में ताऊ और काका के पहचान बदल गये।।

बढती उम्र से सबके सोच बदल गए, सबके विचार बदल गये।
हाथ में हाथ लेकर चलने वाले, दोस्त बदल गए यार बदल गये।

लहलहाती फसलों के सारे खेत खलिहान बदल गये।
पसीनों की बूंदों में खुशियां तलाशती वो श्रमी किसान बदल गये।

अमीरी गरीबी से बडे बुजुर्गों के सम्मान बदल गये।
पैसो के खनक से सचमुच रिश्तों के सारे ईमान बदल गये।।

वो तालाब बदल गयीं, वो नदी नाले बदल गये।
रक्षक बन अडिग रहने वाले हिम्मत वाले बदल गये।।

मन को हर्षाति बागों के फुल, तितली और बेल बदल गये।
उछल कूद करने वाले बचपन के सारे खेल बदल गये।।

कुंठित बुद्धि से हमारे सारे सांस्कृतिक त्यौहार बदल गये।
गले लगाने वाले वो भैय्या भाभी के लाड प्यार बदल गये।।

मन को शांति देने वाले पूजा पाठ और हवन बदल गये।
अविश्वास के आंकलन से राम कृष्णा के भजन बदल गये।

कुसंस्कृति की गंदगी से और तो और बच्चों के केश बदल गये।
फूहड़ता में सनकर सबके भेश बदल गए, परिवेश बदल गये।

भ्रष्टता में सनकर जीवन के पासो का हर दाँव बदल गया।
पश्चिमी सभ्यता में सनकर सचमुच गोकुल का गांव बदल गया।।

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गोकुल कुमार पटेल


(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में ।)