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Friday 28 September 2012

कविता


                                   कविता

मन में बह रही, विचारों की जो, उन्मुक्त सविता है l
उन्ही सच्चे अच्छे विचारों का, संग्रह ही कविता है ll

प्रेरणा का जो स्रोत है, दिल की जो उमंग है l
धडकनों की जो आवाज है, अन्तरंग की जो तरंग है ll

भले ही समाज में, धुंधला सा चेहरा ही इसकी छवि है l
पर यथार्थ से जो, अवगत कराये वही कवि है ll

समाज में प्याप्त, कुरीतियों की जो गन्दगी है l
उनकl निवारण करना ही, कविता की बंदगी है ll

अपनी ही बड़ाई लिखना, कविता पर सितम है l
क्योकि समाज की भलाई ही, कविता का माध्यम है ll

कविता का रूप तो, वास्तव में गद्य है l
अनेकता को एकता में लिखना ही पद्य है ll

जो दुखो से लड़कर, दूसरो के कल्याण लिए जीता है l
वही कवि और उसकी वाणी ही कविता है ll

कवि और कविता का, जो अनुपम मेल है l
वास्तव में वो तो शब्दों का खेल है ll


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Thursday 27 September 2012

दीक्षा - गुरु वाणी


गुरुदेवजी का साक्षात्कार - I

दीक्षा - गुरु वाणी


            सदगुरुदेवजी का ये आशीर्वाद ही था की मुझे परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री तेजसिंह जी राजावत (निखलेश) जी से साक्षात्कार करने का मौका मिला, उनको जानने का मौका मिला और ये उनकी विशाल ह्रदय की महानता ही तो थी की मैं उनके श्री चरणों में बैठ कर उनका सानिध्य प्राप्त कर सका l जीवन में दीक्षा के महत्त्व को समझ सका l उन्होंने दीक्षा पर प्रकाश डालते हुए कहा था की वैसे तो सृष्टि के समस्त चर-अचर, जीव-जंतुओं का सृजन और संहार परम ब्रम्हा परमेश्वर के आशीर्वाद से होता है, लेकिन इस भू-मंडल में मनुष्य जीवन के उत्त्पत्ति का आधारशिला माता-पिता पर निहित होता है l या यों कहे की हमारे जीवन की उत्त्पत्ति माता-पिता की देन होती है l

            मनुष्य जन्म लेता है और जन्म लेते ही सभी क्रिया कलाप करने लग जाता है खाना खाने लग जाता है, सबको पहचान लेता है की ये मेरे माता-पिता है, दादा-दादी, भाई-बहन, चाचा-चाची है, ये मेरे दोस्त है, वह दोस्तों के पास जाकर खेलने लगता है, पुस्तक पकड़ कर पढ़ने चला जाता है, सामर्थवान बनकर जीवनयापन करने लगता है l 

ऐसा होता है क्या?

नहीं न?

ऐसा नहीं होता है ?

क्योंकि?

ऐसा संभव ही नहीं है l

     मनुष्य का जन्म तो हो जाता है पर मनुष्य एक बेजान लाश की तरह पड़ा रहता है धीरे-धीरे वह बड़ा होता जाता है, जानने लगता है, समझने लगता है, पहचानने लगता है l परिवार का, समाज का, देश का, ऋणी होकर शिक्षा प्राप्त करने लगता है l जैसे-जैसे ये बड़ा होकर समाज में रहने लायक हो जाता है और अपने परिवार के दायित्त्वों का पालन करने लगता है, अपने आप में इतना खो जाता है की वह समाज, देश, संस्कृति, आध्यात्म और ईश्वर को भूल जाता है l उनके उन ऋणों को भूल जाता है, जिनको प्राप्त कर वह इस लायक बना है l उन का बोझ, उन का पाप उसके मन को विचलित कर देता है और वह कई प्रकार के अनजानी विपत्तियों, बिमारियों से घिर जाता है l जो कुछ भी वह प्राप्त किया रहता है सब नष्ट हो जाता है या सब कुछ होते हुए भी वह संताप करने लगता है l कभी व्यर्थ की चिंताएं, तो कभी मौत की चिंताएं मन को सताने लगती है, मनुष्य के मन में अपने आप का, अपने परछाई का डर व्याप्त हो जाता है l
  

            तब गुरु दीक्षा ही जीवन को एक नया मोड़ प्रदान कर सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है जिससे मनुष्य मोह, माया, जाति, उंच-नीच आदि का भेद त्याग कर अपनत्व को अंगीकार कर लेता है l सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय ही उसका उद्देश्य हो जाता है l वह समाज के, देश के सुख में सुखी होता है और दुःख में दुखी होता है l वास्तव में देखा जाये तो जीवन का प्रारंभ यही से (दीक्षा से) ही होता है व्यक्ति को पूर्णत्व प्रदान करने की इसी दुर्लभ प्रक्रिया का नाम ही दीक्षा हैं l 


            दीक्षा से ही मनुष्य में आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है, सात्विक गुणों को प्राप्त कर वह अँधेरे से उजाले की ओर अग्रसर होने में सक्षम हो पाता है और जब वह गुरु को आत्मसात कर लेता है तो वह सभी प्रकार के ऋणों से मुक्त होकर परम ब्रम्हा को प्राप्त कर लेता है, मोक्ष को प्राप्त कर लेता है l इसलिए यथा संभव गुरुचरणों में बैठ कर हर इन्सान को गुरु दीक्षा लेनी ही चाहिए l


गोकुल कुमार पटेल



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Tuesday 4 September 2012

सपना हैं या अनुभूति -5



सपना हैं या अनुभूति -5

        
     आज मौसम कितना सुहाना लग रहा हैं , क्या आज कोई त्यौहार हैं ? अपने दिमाग पर जोर लगाया तो जबाब मिला - नहीं? नहीं तो?

            हर तरफ फिर आनंदमय का माहौल क्यो हैं, सब के सब गलियों की सफाई में जुटे हुये हैं, मेरे घरवाले भी उन्हीं में शामिल हैं  मैने एक दो बार पुछने की कोशिश भी की, कि ये सब क्यों हो रहा हैं ? आज कौन सा त्यौहर हैं? या ये सब सफाई का क्या कारण हैं? पर सभी काम में  इतने ब्यस्त थे कि उन्हें बात करने की भी फुरसत नही थी।

           मैं भी काम में हाथ बटाने लग गया ताकि इसी बहाने पुछ सकूँ की आज क्या हैं पर मेरी सारी कोशिश बेकार गई l  सभी ने सिर्फ मुस्कुराकर ही मेरे सवालों का जबाब दे दिए और मैं निरुत्तर, थककर एक किनारे रखे हुए टेबल पर बैठ गया l अचानक मेरी नजर ले जा रहे बड़े-बड़े चित्र पर पड़े l मैं चौकन्ना हो गया l  मेरे होंठों पर मुस्कान दौड़ पड़ी, मन मुझसे कहने लगा की  जिसके लिए मैं इतना कोशिश कर रहा था वो तो सामने हैं l जरुर इनमें चित्र होंगे और उन चित्रों को देखकर सहज ही पता चल जायेगा की कौनसा समारोह होने वाला है l किसलिए ये सब तैयारियां है या फिर कौन आने वाला है l 
            
          मैं लपककर उन चित्रों की तरफ भागा पर ज्यों ही मेरी नजर उन चित्रों पर पड़ी, मन व्याकुल हो गया क्योकि एक चित्र में तो बड़े-बड़े हरे-भरे पर्वत श्रृंखलाओं का चित्र बना हुआ था तो दुसरे में ब्रम्हांड के सारी शक्तियों को चित्रांकित किया गया था l  उन चित्रों ने मुझे परेशानी में डाल दिया था मैं समझ नहीं पा रहा था की इन चित्रों का क्या मतलब है, आख़िरकार मन में एक विचार आया की हो न हो ये आध्यात्म से जुड़ा कोई कार्यक्रम है, और इसमें कोई महापुरुष का आगमन होने वाला हैl  ये सब सोचकर मैं जल्दी से तैयार होने के लिए, कुछ कपडे लेकर नहाने के लिए तालाब पहुँच गयाl  कपडे किनारे रखा और तालाब की तरफ डुबकी लगाने चल पड़ा पर मैंने ज्यों ही कदम आगे बढाया सामने देखकर मैं सन्न रहा गया, देखा की दाए तरफ तालाब के सीढ़ी के बगल में एक पीले रंग का छोटा नाग बिल से निकल कर मेरे तरफ ही आ रहा है पर मुझे तो नहाने की जल्दी थी उसको अनदेखा करके मैंने तालाब में जाने के लिए कदम बढ़ा ही दिया पर क्या देखता हूँ की नीचे भी एक काले पीले रंग का धारी युक्त एक सांप सामने से ही मेरा रास्ता काट रहा है मेरा मन विचलित हुआ जा रहा था और मैं बार बार कभी इधर तो कभी उधर देखा रहा था और सांप है की मेरे तरफ ही आ रहे है l 

          मैं डर के मारे कांपने लगा और कुछ पल के लिए आँखें बंद कर ली, पर नाग की फुन्फकार मेरे कानो तक आकर मुझे डरा रही थी, धीरे-धीरे फुन्फकार की आवाज तेज हो रही थी l मैं डर से कांप रहा था और उसी डर ने मुझे आँखे खोलने पर मजबुर कर दिया l और जब मैंने आँखे खोली तो देखा – चारो तरफ अँधेरा ही अँधेरा छाया हुआ  है, लेकीन फुन्फकार की सरसराहट अब भी आ रही है l मैंने आँखों पर जोर दिया और देखने की कोशिश करने लगा तो पाया की सामने छत पर लटकता हुआ पंखा घूम रहा है l और उसकी सरसराहट मेरे कानो से टकराकर फुन्फकार सा प्रतीत हो रहा था l कुछ देर तक मैं यूँ ही पंखे को देखता रहा और सोचने की नाकाम कोशिश करता रहा l

        न जाने ये सपने कहाँ- कहाँ से आ जाते है और पता नहीं ये भविष्य के किन-किन घटनाओं से जुड़े होते है l कहीं ये सपना भी मुझे भविष्य की किन्ही घटनाओं से अवगत तो नहीं करना चाह रही है? हरे-भरे पर्वत श्रंखला का तात्पर्य क्या है? ब्रम्हांड की शक्तियों को क्यों चित्रांकित किया गया था? वहां कौन सा कार्यक्रम होने वाला था? पीले नाग का क्या मतलब है? काले-पीले रंग का वह सांप मेरा रास्ता क्यों रोक रहा था? मैं आगे बढ जाता तो क्या होता? इन सब सवालों का जबाब तो मैं नहीं जानता? पर ये महसूस जरुर होता है की आने वाले दिनों में इन सवालों का जबाब खुद ब खुद मेरे सामने आ जायेंगें l 


गोकुल कुमार पटेल



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Dream or sensibility -5

          
           Today's weather looks so amazing, what's a festival today? So put your mind got your answer - no? Not so?
            
             Why are the delightful atmosphere of each side; There are all involved in the cleaning of streets, My family also includes those I tried to ask a couple of times, why is all this happening? Which is a festival today? Or what causes all this cleaning? Were so busy at the work that was not too busy to talk to them.

             I also took a diversion so that the hand could ask the same excuses what are today; all my efforts were wasted on. He only smiled and gave the same answer all my questions and silence, tired and sat down at the table, keeping an edge. Suddenly my eyes are going to get bigger lying on the big picture. I became alert.

             The smile on my lips was running, the mind says to me, for which I was trying to do before her.

            Definitely seeing these pictures and those pictures will know instinctively what is going to function. It is now in preparation for what is to come, or who. I ran towards those pictures to rush as soon as my eye fell on the pictures,  Mind was disturbed because the picture so big - big green - lush mountain ranges when the portrait was painted in another universe powers. Those pictures put me in trouble, I did not understand what these images mean, after all do not have an idea in mind, and it is no program associated with spirituality and having a master's arrival is.

            They all think I have to be ready soon; some clothes reached the pond for bathing. Placed along the sides of the cloth and dip pool was a step forward, but I soon became a mother I'm numb, Seen on the lake right next to the ladder a little yellow snake is coming towards me out of bill, But I was quick showers; I ignore him and go to step towards the pond,
What to see black snake with yellow stripe down the front path is cut from the same mine, My mind was being distracted and I looked again there was ever here sometimes and the snake is coming towards me.
           
             I started shivering with fear and have eyes for a few moments, the hiss of the serpent was scaring me come to my ears, gradually intensified was hissing. I was trembling with fear and that fear made ​​me helpless eyes open. And when I saw opened eyes - dark shadow is darkness all around, but still there is the rustle of hiss. I focused on the eyes and began to try to see hanging on the ceiling in front of the fan is spinning. Hiss and rustle which would seem to run over my ears. For a while, I just looked at the fan failed and been trying to think.

            Do not let these dreams where - where do they come from and I do not know what the future - which is linked to the events. Somewhere I have this dream of the future seems to be not aware of any events?  Green - green mountain range is means?  Why was drawn to the powers of the universe?  Which program was going to be there?  What is the yellow snake? Black - yellow snake that was my way, why stop? What happens if I go ahead?  I do not know the answer to all these questions? But this feeling is definitely answering these questions in the coming days before my eyes shall be accepted automatically.


Gokul Kumar Patel