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Monday 7 July 2014

हमारा धर्म हमारा भगवान (हिन्दू संस्कृति बचाने की एक कोशिश) – 3

हमारा धर्म हमारा भगवान (हिन्दू संस्कृति बचाने की एक कोशिश) – 3


  किसी को भी देखकर हमारे मन में जो प्रतिक्रिया होती है, उसे ही भावना कहते है। और भावना की बिशेषता ये होती है  कि हमारे लाख छिपाने की कोशिश करने  के वावजूद भी सत्यता चेहरे पर झलक ही जाती है। यह प्रतिक्रिया धर्म  या जाति बिशेष न होकर सभी प्राणियों के लिए समान रूप से होता है। जीवन में सभी भावनाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान होता  है।  लेकिन जो हमारे नैतिक मूल्यों में, व्यवहार में वृद्धि करता है वो है आदर की भावना, सम्मान की भावना इसीलिए हमें बचपन से सिखाया जाता हैं कि सभी का आदर करो, सभी को उचित सम्मान दो। हिन्दू धर्म में आदर-सम्मान की सर्वोच्च शिखर पर जो विराजमान है उस अलौकिक शक्ति को परमब्रम्हा परमेश्वर मानकर उसके प्रतीकात्मक स्वरुप के लिए उसे भिन्न-भिन्न प्रकार के धातुओं एवं पत्थरों से विभिन्न प्रकार का रूप देकर, मूर्ति बनाकर, पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा की जाती है।  उनके पूजा में भी सर्वथा पवित्रता बरती जाती है और इसीलिए जहाँ तक संभव हो उनके पूजा के लिए अलग कक्ष का निर्माण भी करवाया जाता है।

पहले सार्वजनिक तौर पर भी गांवों व शहरों में एक-एक ही मंदिर हुआ करता था, और उसके पूजा से लेकर साफ-सफाई पर भी विशेष ध्यान दिया जाता था। पर धीरे-धीरे इंसानों की धार्मिक प्रवृति बढ़ने लगी और एक दुसरे से अपने आपको श्रेष्ट दिखाने की कोशिश में जगह - जगह अलग - अलग तरह के मंदिरों का निर्माण किया जाने लगा, जिसके फलस्वरूप मंदिरों की संख्या वृद्धि होने के साथ- साथ वहां पवित्रता का अभाव हो रहा है जिसको हम पवित्र मानते है, उसके आसपास का जगह गन्दगी से भरा रहता है लोग आते जाते उसी के आड़ में गुटखा खा कर थूकने के साथ ही साथ  शौच करते नजर आते है।

  आधुनिकता के इस दौर में और अधिक परिवर्तन हुये हुए और पत्थरों के मूर्तियों का स्थान विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक, चीनी मिट्टी, कांच के सुनहरे मूर्तियों एवं विभिन्न आकार के सुनहरे पोस्टरों ने ले लिया । जिसको हम पवित्र और पूजनीय मानते थे उसको पूजा कक्ष और मंदिरों से निकाल कर सजावटी सामान की तरह घर के सभी हिस्सों में सजाया जाने लगा है। अब तो स्थितियां यह हो गई है कि इन पोस्टर रैपर का  प्रचलन व्यापारिक रूप लेकर जीवन के हर एक पहलू से जुड़ गया है। चावल दाल की बोरी हो या मशालों के पैकेट, खाने पीने की हर वस्तुओं से लेकर गंजी, जांघिया, जूता, चप्पल जैसे पहनने तक का कोई परिधान भी भगवान के चित्रों से अछूता  नहीं रह गया है। अब तो स्थितियां यह हो गई है कि भगवान के चित्र के ये पोस्टर्स व रैपर कूड़े के ढेरों में पड़े मिलते है तो कहीं-कहीं गन्दी नालियों में तैरते नजर आते है। जिसके फलस्वरूप हम आदर व सम्मान की परिभाषा को भूल रहे है और हम अपने ही भगवान का अनादर करने लगे है ।


  अशिष्टता की हद तो तब और पार हो जाती है जब कुछ बेशर्म लोग मूर्खतापूर्वक सीढ़ियों एवं घर की बाहरी दीवारों को कुड़ें-कचड़ें, थूक और शौच से बचाने के लिए " यहाँ पेशाब करना मना है " लिखने के साथ ही साथ भगवान का चित्र वाला टाइल्स  या चौखटा दीवार पर लगा देते है। उन बेशर्मों को शर्म नहीं आती  है पर हिंदुत्व तो तब शर्मसार होती है जब ये सब देखकर भी लोग मौन रहते हुए उसी स्थान पर कचरा फेंकते है, थूकते है, शौच करते  है। अब तो ऐसा लगता है कि बहुतायत हिन्दू आदर-सम्मान को भूल गए है, धर्म की मर्यादा को भूल गए है, भगवान को भूल गए है। और सत्यता को जाने बगैर अन्धविश्वास  के पीछे  दौड़ने लगे है, कही कोई पत्थर निकला तो भगवान समझ  कर पूजा करने लगे, कही पेड़  की गांठ  एवं शाखाओं से कोई आकृति बन गया तो पूजा करेंगें। कहीं लोग भगवान को लेकर भीख मांग रहे है तो कहीं भगवान के बिभिन्न प्रकार के यन्त्र बनाकर कवच बनाकर बेचा जा रहा  है। कोई कला  के नाम पर  टी. वी., सिनेमा एवं वास्तविक जीवन में बहरूपिया (भगवान जैसा वेशभूषा पहनने वाला) बनकर हमारे भगवान का मजाक उड़ा रहे है और हम मजे के साथ उसका आनंद ले रहे है । तो कोई साधु बन, गुरु बन चमत्कार दिखाकर लोगों को बेवकूफ बना कर अपने आपको भगवान का अवतार बतलाकर अपनी पूजा करवा रहा है । और हम सब मौन होकर अंध भक्त बनकर उनकी पूजा कर रहे है ।  यह कौन सी  हिन्दू विचारधारा है, यह कैसा हिंदुत्ववाद है जो भगवान की उपेक्षा कर इंसान की पूजा करते और अपने आपको हिन्दू कहते हुए हमें शर्म भी नहीं आ रही है।

·                 क्या हम भगवान के चित्र वाले इस तरह के पोस्टर रैपर के छपने का विरोध नहीं कर सकते है?
·                 विरोध न सही क्या हम इस तरह के पोस्टर रैपर का उपयोग करना बंद नहीं कर सकते है।
·            यदि भगवान का पोस्टर रैपर या मूर्तियों खरीदते भी है तो उसका उपयोग उचित स्थान में करें उसे फाड़कर यत्र तत्र या कूड़े कचरों के साथ तो कदापि न फेकें।
·            कम से कम शुरूआती दौर इनका उपयोग सजावटी सामान की तरह न  करके आवश्कतानुसार क्या कम  नहीं कर सकते है।
·             क्या सीढ़ियों एवं निचली दीवारों पर भगवान का चित्र वाला टाइल्स या चौखटा  लगाना बंद नहीं  कर सकते है ।
·                 क्या इस तरह से जगह - जगह मंदिर निर्माण को बंद नहीं  किया जा  सकता है ।

        उपरोक्त बातें शायद आपको कडुआ लगे।  और आप मुझे हिन्दू विरोधी समझे इसके लिए मैं माफ़ी चाहता हूँ। और आपको यह बता देना चाहता हूँ कि मेरी लड़ाई हिन्दू या हिंदुत्व् वादी विचारधारा  से नहीं है और मैं न ही धर्म को लेकर कोई विवाद करना चाहता हूँ क्योकि मैं भी एक हिन्दू हूँ, और मुझे मेरे हिन्दू होने पर गर्व भी होता है , मैं तो उस व्यवस्था से लड़ना चाहता हूँ, उन तरीकों को बदलने की कोशिश करना चाहता हूँ जो हमारे संस्कृति को रौंद रहा है, धूमिल कर रहा है, मैं आप लोगों को यह बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि ईश्वर जिसकी हम पूजा करते है जिसका सम्मान करते है उसका न तो हम ही मजाक उड़ाये और न ही किसी को ऐसा करने दे। अपने अंदर की भावनाओं को जगाये और हमारे भगवान को उचित सम्मान के साथ-साथ उचित स्थान प्रदान करने में सहयोग प्रदान करें, जिससे हमारे हिन्दू संस्कृति को सही दिशा दिया जा सके। हिन्दू संस्कृति को बचाये रखा जा सकें। ऐसी ही एक कोशिश में........


गोकुल कुमार पटेल


(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l)