अब तो कोई दीपक जला दो
फ़ैल
गया है अँधियारा, अब तो कोई दीपक जला दो ।
न
मिले दीपक अगर, तो मुझको ही दीपक बना दो ।।
तोड़
सकूँ दासता की बेड़ी, छुपे, कोई मेरे हौसले जगा दो।
छोड़
सकूँ पीछे-पीछे चलना, अलग सा कोई रास्ता सुझा दो।।
फ़ैल
गया है अँधियारा, अब तो कोई दीपक जला दो ।
न
मिले दीपक अगर, तो मुझको ही कोई दीपक बना दो ।।
मंदिर-मस्जिद
की ठोकर, बहुत है खाई शुरू-शुरू में,
गुरु
को ईश्वर बना पूजा, पर नहीं पाया ईश्वर को गुरु में ।
भक्ति
की कड़ी तोड़, मन को मेरे कोई ईश्वर में रमा दो ।।
फ़ैल
गया है अँधियारा, अब तो कोई दीपक जला दो ।
न
मिले दीपक अगर, तो मुझको ही कोई दीपक बना दो ।।
कर
शामिल, बहरों और अंधों में,
रखकर
गोली खूब चलाई, बन्दुक मेरे कन्धों में।
अमरबेल
सा बढ़ गया, अब मेरे ही चंदों में,
विश्वास
लूट बेच दिया उसने, राजनीति के धंधों में ।
राजतंत्र
को काट फेंक, राजनीति को कोई नीति सीखा दो ।।
फ़ैल
गया है अँधियारा, अब तो कोई दीपक जला दो,
न
मिले दीपक अगर, तो मुझको ही कोई दीपक बना दो।।
(इन
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गोकुल
कुमार पटेल