विचार-मंथन
हिंदुत्व
को जिसने अब तक नहीं जाना है
उन्होंने
ही दूसरे धर्म को अपना माना है।
वे
ही भूल कर अपने सारे रस्मों रिवाज,
संस्कृति
का अर्थ बताने चले है।
अपनों
से नाता तोड़कर,
गैरों
पर हक़ जताने चले है।
वादों
की जिनकों क़द्र नहीं,
देखों
आज वे वादा निभाने चले है।
निरीह
पशुओं को काटकर,
न
जाने कौन सा उत्सव मनाने चले हैं।
कर
गद्दारी अपने ही धर्म से,
गद्दार
आज वफ़ादारी का पाठ पढ़ाने चले है ।
जी
करता है खूब गालियाँ दू उन्हें ।
खूब
भला बुरा कहूँ उन्हें ।
पर
क्या करूँ, मेरा धर्म मुझे याद आ जाता है।
दूसरे
धर्म की जो, बुराई करना नहीं सिखाता है।
फिर
ये सोचकर चुप हो जाता हूँ,
की
शायद उनका भी मन उदास होगा ।
जल
रहें होंगें वे भी पश्चाताप की अग्नि में,
दिलों
में उनके अब भी जिन्दा कोई एहसास होगा।
शायद
लोकलाज से, समाज से वे डरते होंगें।
नतमस्तक
हो वे भी ईश्वर की चुपचाप पूजा करते होंगें।
उन्हें
अपने मन की बात बताने चलें है।
दिल
से आज उन्हें हम अपनाने चलें हैं।
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गोकुल कुमार पटेल
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बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l)