महबूब
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll
वो हँसी दिलरुबा, दिलकशी होगी,
मेरा महबूब, मेरा हमदम महजबी होगी
आँख हो जिसके छलकते प्याले
जाम को जिसके , पीकर मैं झूमता हूँ
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll
होंठ जिसके खिलता कमल हो,
फुल से मैं प्यार को पूजता हूँ l
हँसने से जिसके बिखरे मोती,
मोती से मैं सपनों की माला संजोता हूँ l
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll
बिंदिया हो जिसके चाँद सितारे l
जिनसे बने सरे प्यारे नज़ारे l
जुल्फ हो जिसके काले काले l
ओढ़कर सोये जिसे उजाले l
आवाज से जिसके मिठास टपके ,
मिठास को मैं जीवन में घोलता हूँ l
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll
नख से शिख तक जिसके अदा ही अदा हो l
अदा भी ऐसी , जो सबसे जुदा हो l
उस पर मेरा दिल फ़िदा हो l
ऐसे सपनों के परी को, मैं दिन में खोजता हूँ l
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll
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