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Friday 29 December 2017

तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है

तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है
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जब लडकपन छोड़ तुम हो जाओगी सयानी,
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब किसी के प्यार में तुम हो जाओगी दिवानी।
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब किसी के याद में तडपेगी तुम्हारी जवानी,
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब चला जाऊँगा और रह जायेगा मेरी निशानी,
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब मेरे प्यार की हकीकत बन जायेगी कहानी।
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब सुनोगे तुम मेरे दिल ये बयां औरों के जुबानी,
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब कभी कोई करेगा मेरे जैसा शरारत, शैतानी,
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब कोई गीत सुनायेगा मैं तेरा राजा तु मेरी रानी।
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब सर्द हवाओं से हो जायेगा मौसम सुहानी,
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब साथ कोई न हो और बढ जायेगी परेशानी।
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब पडेगी हर बातों को अपने ही मन में दबानी,
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब नीरस सा लगने लगेगा अपनी जिंदागानी।
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब पड जायेगी तस्वीरों को तस्वीरों में छिपानी।
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब खतों को न चाह कर पड जायेगी जलानी।
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब प्यार के प्यार को देखकर होगी तुम्हें हैरानी,
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब दिल का जख्म ताजा हो और दर्द हो पुरानी,
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।
जब बहेगी तेरे गालों पे मेरे आँखों का पानी,
तब तुम्हें एहसास होगा मोहब्बत किसे कहते है।

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गोकुल कुमार पटेल


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Monday 18 December 2017

अब की बार कांग्रेस को लाना हमारी मजबूरी है

अब की बार कांग्रेस को लाना हमारी मजबूरी है
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विकास की राह ताकती छत्तीसगढ़ महतारी की, 

हर अभिलाषा अधूरी है।
रमन तेरा जाना जरूरी है,

कांग्रेस को लाना हमारी मजबूरी है
एक नहीं दो नहीं तीन-तीन बार,

हमने तुम्हें मौका दिया।
हर बार तेरे झूठी वादों की कहकसो ने,

हमें चौका दिया।
भोलीभाली जनता की विश्वासों पर,

तुमनें खोपी छूरी है।
रमन तेरा सरकार जाना जरूरी है,

अब की बार कांग्रेस को लाना हमारी मजबूरी है
विकास की राह ताकती छत्तीसगढ़ महतारी की,
हर अभिलाषा अधूरी है।


सस्ते में चावल बाँट कर समझ रहा है,

गरीबी उन्मूलन का उपाय किया है।
पर सच तो ये है, 

मजदूरों को कमजोर और निःसहाय किया है।
न बोनस दिया न कीमत दिया, 

धान भी तूने लिया नहीं।
सारी फसल गई अकाल में,

फिर भी कर्जा माफ किया नहीं।
छत्तीसगढी़ मेहनतकश मेहनती अब,

खुन के आँसू पी रहा है।
गरीबी के आँकड़ों में,

एक नंबर का तमगा लिए जी रहा है।
यहाँ दाने-दाने को मोहताज़ किसान, 

तू खा रहा हलवा पूरी है।
विकास की राह ताकती छत्तीसगढ़ महतारी की,

हर अभिलाषा अधूरी है।
रमन तेरा सरकार जाना जरूरी है,

अब की बार कांग्रेस को लाना हमारी मजबूरी है
विकास की राह ताकती छत्तीसगढ़ महतारी की,
हर अभिलाषा अधूरी है।


औद्योगिकरण का आड कर,

तकलीफ किसी की नहीं देख रहा है।
शोषण कर स्वार्थ के तवों पर,

सिर्फ अपनी रोटी सेंक रहा है।
हिन्दुओं को बरगला कर,

राम के नाम पर लूट रहा है।
बाहर के घुसपैठियों को,

हर जगह काम पर यहाँ ठूस रहा है।
बढ़ रही बेरोजगारी है, 

शिक्षित और अनपढ़ सब परेशान है
तेरे निरंकुश शासन और कुर्सी लोलुपता से,

सब हैरान है।
यहाँ के नौजवानों से भी,

मुहँ मोड़कर तुमने बना ली दूरी है।
विकास की राह ताकती छत्तीसगढ़ महतारी की,

हर अभिलाषा अधूरी है।
रमन तेरा सरकार जाना जरूरी है,

अब की बार कांग्रेस को लाना हमारी मजबूरी है
विकास की राह ताकती छत्तीसगढ़ महतारी की,

हर अभिलाषा अधूरी है।


बच्चे बूढ़े और जवान सभी, 

तेरे मनसूबों को हर घडी भाँप रहे है।
जीवित ही क्या बेजान सड़कें भी,

घडी-घडी तेरी राह ताक रहे है।
साईकिल, मशीन, टेबलेट जैसी चीजों से,

जनता को फुसला रहे हो।
बडे-बडे वादे कर,

अपने ही हर वादों को झूठला रहे हो।
राज्य के खनिज संपदाओं का,

कर रहे हो घोटालों पर घोटाला।
जनता का दिवाला निकालने वाले,

गोरे तन पर तेरा नीयत है काला।
घमंड हो गया है तुम्हें अपने जीत का,

अहं तेरा टूटना जरूरी है।
विकास की राह ताकती छत्तीसगढ़ महतारी की,

हर अभिलाषा अधूरी है।
रमन तेरा सरकार जाना जरूरी है,

अब की बार कांग्रेस को लाना हमारी मजबूरी है
विकास की राह ताकती छत्तीसगढ़ महतारी की,

हर अभिलाषा अधूरी है।


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गोकुल कुमार पटेल

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Sunday 3 December 2017

मुझे भी भगवा लहराने दो

"मुझे भी भगवा लहराने दो"
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कर्तव्य पथ पर साथ चलूंगा, मुझे भी साथ आने दो।
पल भर ठहर जाओ, मुझे भी केसरिया सजाने दो।
देशप्रेम की भावना मन में मेरे उत्साह भर रहा।
कतरा कतरा खून रगो का मुझको हर्षित कर रहा।
सारा अंबर गुंजित होगा भारतमाता के जय जयकारो से।
जय हिन्द वन्दे मातरम् का नारा मुझे भी लगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।

सारा जहाँ जहाँ हिन्दूत्व का झंडा लहरा रहा।
हिन्दू हिन्दू पर ही यहाँ डंडा बरसा रहा।
कुछ तो नादान है कुछ नादान बने बैठे है।
कुछ तो मुस्लिमों का फरमान बने बैठे है।
कुंठित मन मुक्त होगा शंकाओं के घेरो से।
धधक उठेगी ज्वाला कोयले के ढेरों से।
झूठ कपट का बादल छठ जाने दो।
राम कृष्ण का भजन मुझे भी सुनाने दो।
जय हिन्द वन्दे मातरम् का नारा मुझे भी लगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।

शैतान झूठ फरेब का हर सामान लिए बैठा है।
बहरूपिया गली गली में भगवान बना बैठा है।
पाखंडी आडम्बरो से समाज को दूषित कर रहा।
धूर्तता से धुर्त अबोध मन में मीठा जहर भर रहा।
भेद नहीं कर पा रहा मन धार्मिक मतभेदों में।
ज्ञान सोई हुई है अपने ही पुराणों और वेदों में।
मानवता का पाठ अब सबको पढाना होगा।
चीर निंद्रा से सत्य को अब जगाना होगा।
ढोल नगाडा और मृदंग मुझे भी बजाने दो।
जय हिन्द वन्दे मातरम् का नारा मुझे भी लगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।

रखो विश्वास, छोडो न आस।
जब तक रहेगी तन में साँस।
रघुकुल की गरिमा कलंकित न हो पायेगी।
कुरूवंश की घटना दूबारा घटित न हो पायेगी।
विक्रमादित्य का आह्वान करूंगा।
अखंड भारत का सपना साकार करूंगा।
कृष्ण भक्ति में रमकर,
गीता के उपदेशों का विस्तार करूंगा।
पांचजन्य पर एक बार फिर से मुझे भी फूंक लगाने दो।
जय हिन्द वन्दे मातरम् का नारा मुझे भी लगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।

बलिदानी रक्त मुझे भी पुकारती है।
अंबर का वक्त मुझे भी निहारती है।
हौसले से मेरा भी रक्त उफन रहा,
रोम-रोम मेरा भी, मुझको धिक्कारती है।
अब तो मैंने ठान लिया है,
लक्ष्य अपना जान लिया है।
अब तो दीपक राग गाऊँगा,
या खुद ही दीप बन जाऊँगा।
अखंड ज्योत के इस प्रकाश से विश्व को जगमगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।

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गोकुल कुमार पटेल


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Saturday 11 November 2017

महबूब


महबूब




अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ  ll
वो हँसी दिलरुबा, दिलकशी होगी,
मेरा महबूब, मेरा हमदम महजबी होगी
आँख हो जिसके छलकते प्याले
जाम को जिसके , पीकर मैं झूमता हूँ
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll

होंठ जिसके खिलता कमल हो,
फुल से मैं प्यार को पूजता हूँ  l
हँसने से जिसके बिखरे मोती,
मोती से मैं सपनों की माला संजोता हूँ  l
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll

बिंदिया हो जिसके चाँद सितारे  l
जिनसे बने सरे प्यारे नज़ारे  l
जुल्फ हो जिसके काले काले  l
ओढ़कर सोये जिसे उजाले  l 
आवाज से जिसके मिठास टपके ,
मिठास को मैं जीवन में घोलता हूँ  l
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ  ll

नख से शिख तक जिसके अदा ही अदा हो  l 
अदा भी ऐसी , जो सबसे जुदा हो  l
उस पर मेरा दिल फ़िदा हो  l
ऐसे सपनों के परी को, मैं दिन में खोजता हूँ l
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll  


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Monday 2 October 2017

गोडसे तु पहले आया होता तो अच्छा होता

गोडसे तु पहले आया होता तो अच्छा होता
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गोडसे तु पहले आया होता तो अच्छा होता।
गोडसे तु पहले गोली चलाया होता तो अच्छा होता।
कितना कुछ बदल गया, तब तुमने चुप्पी तोडी।
कितना कुछ बदल गया, तब तुमने साथ छोडी।
गोडसे तु पहले मन को समझाया होता तो अच्छा होता।
गोडसे तु पहले गोली चलाया होता तो अच्छा होता।
गोडसे तु पहले आया होता तो अच्छा होता।

अमृतसर के जलियावाले बाग में कितना नरसंहार हुआ।
निर्दोष, निहत्थो पर कितने बेदर्दी से प्रहार हुआ।
उन्होंने कुछ नहीं कहा, क्योंकि उनसे वे मिले हुए थे।
पर तु भी तो मौन था, क्या तेरे होंठ भी सिले हुए थे।
भारतीयों पर जुल्म होता रहा, आँखें बंद कर तु सोता रहा।
गोडसे तु पहले जाग गया होता तो अच्छा होता।
गोडसे तु पहले गोली चलाया होता तो अच्छा होता।
गोडसे तु पहले आया होता तो अच्छा होता।

भगत, राजगुरू, सुखदेव ने आजादी का आगाज किया।
संसद में बम गिराकर, बहरो के लिए आवाज किया।
एक भी जान न गई और उनके मनसूबों को सब जान गए।
रगो में बहती देश भक्ति की धारा को सब पहचान गए ।
सबकी नजर गाँधी पर थी,पर वे मुँह अपना खोले नहीं।
रूक सकती थी फाँसी, फिर भी गाँधी कुछ बोले नहीं।
गोडसे तु उस दिन कुछ बोला होता तो अच्छा होता।
गोडसे तु उस दिन गोली चलाया होता तो अच्छा होता।
गोडसे तु पहले आया होता तो अच्छा होता।

केरल में हिन्दुओं को मारकर, मुस्लिम कर रहे थे गुनाह ।
और गाँधी दे रहे थे मुस्लिमों के हर अपराधों को पनाह।
स्वामी श्रद्धानन्द के हत्यारे अब्दुल रशीद को सबने कहा कसाई।
शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द को उन्होंने पथभ्रष्ट कहा और अब्दुल रशीद को कहा भाई।
गोडसे तु उस दिन गाँधी को रिश्तों की अहमियत समझाया होता तो अच्छा होता।
गोडसे तु उस दिन गोली चलाया होता तो अच्छा होता।
गोडसे तु पहले आया होता तो अच्छा होता।

नेताजी सुभाष जीत कर हारे, वल्लभभाई भी जीत कर हारा।
पट्टाभि सीतारमय्या, जवाहरलाल नेहरु ने हारकर बाजी मारा।
मन्दिरों पर सरकारी व्यय के पारित प्रस्ताव को निरस्त करवाया।
और हठकर सरकारी खर्चो पर मस्जिदों का मरम्मत  करवाया।
ये सब अभिमान के कारण, कर रहे थे पक्षपात पर पक्षपात।
अनशन की धमकी देकर, मनवा रहे थे अपनी हर बात।
गोडसे तु उस दिन गाँधी को भाई चारे का मतलब समझाया होता तो अच्छा होता।
गोडसे तु उस दिन गोली चलाया होता तो अच्छा होता।
गोडसे तु पहले आया होता तो अच्छा होता।

भारत के विभाजन का गाँधी उत्तरदायी था।
हिन्दुओं की हत्याओं का गाँधी उत्तरदायी था।
अहिंसा, सत्याग्रह के आड में, गाँधी एक अत्याचारी था।
बापू महात्मा के खाल में छिपा, गाँधी एक दुराचारी था।
ब्रिटिश का दलाल था, जिसका तुम्हें मलाल था।
गोडसे तु उनको संत का अर्थ समझाया होता तो अच्छा होता।
गोडसे तु उस दिन गोली चलाया होता तो अच्छा होता।
गोडसे तु पहले आया होता तो अच्छा होता।
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गोकुल कुमार पटेल


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Saturday 2 September 2017

भगवान को भगवान ही रहने दो

भगवान को भगवान ही रहने दो
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जागो हिन्दू जागो अब तो संभल जाओ,
पाश्चात्य सभ्यता से न इतना बदल जाओ।
कृष्ण लला का गुणगान न कर पाओ तो चुप ही रहो।
पर जिसे हम पालनहार कहे, उसे न गुनहगार बताओ।
समझदारी से काम लो, किसी के बहकावे में न आओ।
भगवान को भगवान ही रहने दो, इन्हें न डाँन बनाओ।

भाद्रपद्र कृष्ण अष्टमी को कडी सुरक्षा और कडी पहरेदारी में,
बालक बन अवतरित हुए जेल की चारदीवारी में।
सातों द्वार खोल सबको अचंभित कर दिया त्रिपुरारि ने,
कैद से आजाद हो सबको सुचित किया कृष्ण मुरारी ने।
माँ-बाप के हेराफेरी का न उन पर दोष लगाओ।
समझदारी से काम लो, किसी के बहकावे में न आओ।
भगवान को भगवान ही रहने दो, इन्हें न डाँन बनाओ।

नंदगाँव के पास यमुना नदी में था कालिया नाग का वास।
जहरीले फुफकार से कर रहा था सभी जीव-जन्तु का विनाश।
कालिया को हराकर उसका घमंड चकनाचूर किया।
भेज नागराज को रमणद्वीप ब्रजवासियों का संकट दूर किया।
ऐसे पालनहारी मुरली मनोहर के चरणों में शीश झुकाओ।
समझदारी से काम लो, किसी के बहकावे में न आओ।
भगवान को भगवान ही रहने दो, इन्हें न डाँन बनाओ।

प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य,
राजकुमारियों का अपहरण करना लगता था उसे औचित्य।
दैत्य का वध कर कृष्ण ने 16100 रानियों की बचाई लाज।
रानियों ने तब कहा हे माधव क्या हमें अपनायेगा ये समाज।
चरित्रहीन का कलंक राजकुमारियों की सर से मिटाई।
लाज बचाने के लिए सब राजकुमारियों संग ब्याह रचाई।
ऐसे किशन कन्हैया पर चरित्रहीन का न दाग लगाओ।
समझदारी से काम लो, किसी के बहकावे में न आओ।
भगवान को भगवान ही रहने दो, इन्हें न डाँन बनाओ।

बाप को कारागार में डालकर, कंस मथुरा का राजा था बना ।
भगवान की पूजा, उपासना, यज्ञ करने को कर दिया था मना।
खड्ग, कृपाण का जोर दिखाकर अपनी बात मनवाता था।
खुद को भगवान बतलाकर, अपनी पूजा करवाता था।
धर्म का नाश कर रहा था ताकत के मद में चुर अहंकारी।
कुकर्मी के कुकर्म से पाप का पलडा हो गया था भारी।
अत्याचारी मामा का अंत कर कृष्ण ने अपना फर्ज निभाया।
रिश्ते-नातो से धर्म बडा है दुनिया को सिखलाया।
ऐसे गिरधारी बनबारी पर हत्यारे का न तौहमत लगाओ।
समझदारी से काम लो, किसी के बहकावे में न आओ।
भगवान को भगवान ही रहने दो, इन्हें न डाँन बनाओ।

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गोकुल कुमार पटेल


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Thursday 3 August 2017

दो जून की रोटी

दो जून की रोटी
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आज फिर निकल पडा़ हूँ मैं, अपनी शक्ति आजमाने को,
दुनिया को मेरे होने का एहसास दिलाने को,
अपना और अपने परिवार का अस्तित्व बचाने को।
आज फिर निकल पड़ा हूँ मैं, दो जून की रोटियां कमाने को।

छोड़ कर घर-परिवार, छोड़ कर सारे रिश्ते नातों को,
छोड़ कर बीबी के अधर पर अटकी, अनकही बातों को।
छोड़ कर बच्चों की मुस्कान, लडकपन औऱ शरारतों को,
छोड़कर सुख-दुख से जुडी पल, पल से बनी दिन, रातों को।
आज फिर निकल पड़ा हूँ मैं, दो जून की रोटियां कमाने को।

उसी जज्बे, उसी हौसले से अपनी हुनर दिखाने को,
छलकती माथे की बूंदो से, अपनी किस्मत बनाने को।
तृप्ति की चाह में, अतृप्ति पेट की आग बुझाने को,
आज फिर निकल पड़ा हूँ मैं, दो जून की रोटियां कमाने को।

चीरकर धरती का सीना, उपजाऊ बनाने को,
खोदकर पर्वत, पहाड़ अमृत धारा बहाने को।
नन्ही-नन्ही बीजों से, लहलहाती फसल उगाने को,
आज फिर निकल पड़ा हूँ मैं, दो जून की रोटियां कमाने को।

नम मिट्टी को, पत्थर सा सख्त ईट बनाने को,
ईट से दीवार, दीवार से घर बनाने को।
सपनों के रंगों से, हर दरो दीवार सजाने को,
आज फिर निकल पड़ा हूँ मैं, दो जून की रोटियां कमाने को।

रेशम से धागा, धागे से कपड़ा बनाने को,
तन के संग-संग मन के विचारों को छिपाने को।
घूंघट ओढा़कर, सुंदर मूखडे पर चार चाँद लगाने को,
आज फिर निकल पड़ा हूँ मैं, दो जून की रोटियां कमाने को।
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गोकुल कुमार पटेल

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Thursday 6 July 2017

मेरा गांव बदल गया

मेरा गांव बदल गया
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आधुनिकता और नवनिर्माणों के आड़ में मेरा गांव बदल गया।
कल कारखानों के निर्माण से, पीपल का छाँव बदल गया।

वृक्षों के कटने से, चिडियों के बसेरे बदल गये।
चिडियों की चहचहाट भरी वो सबेरे बदल गये।।

ताजगी भरी सुबह की ताजी-ताजी हवा बदल गयी।
ममत्व और दुलार से पुकारती माँ की तवा बदल गयीं।।

सडक के निर्माण से गली बदल गयीं रास्ते बदल गये ।
पैकेटबंद खानो से सुबह के पौष्टिक नाश्ते बदल गये।।

नल के लगने से सत्कार करती पनीहारन की कुआं बदल गयी।
चिमनियों के लग जाने से आकाश की धुआं बदल गयी।।

ईट पत्थरों के जुडने से घर और मकान बदल गये।
दिखावेपन में ताऊ और काका के पहचान बदल गये।।

बढती उम्र से सबके सोच बदल गए, सबके विचार बदल गये।
हाथ में हाथ लेकर चलने वाले, दोस्त बदल गए यार बदल गये।

लहलहाती फसलों के सारे खेत खलिहान बदल गये।
पसीनों की बूंदों में खुशियां तलाशती वो श्रमी किसान बदल गये।

अमीरी गरीबी से बडे बुजुर्गों के सम्मान बदल गये।
पैसो के खनक से सचमुच रिश्तों के सारे ईमान बदल गये।।

वो तालाब बदल गयीं, वो नदी नाले बदल गये।
रक्षक बन अडिग रहने वाले हिम्मत वाले बदल गये।।

मन को हर्षाति बागों के फुल, तितली और बेल बदल गये।
उछल कूद करने वाले बचपन के सारे खेल बदल गये।।

कुंठित बुद्धि से हमारे सारे सांस्कृतिक त्यौहार बदल गये।
गले लगाने वाले वो भैय्या भाभी के लाड प्यार बदल गये।।

मन को शांति देने वाले पूजा पाठ और हवन बदल गये।
अविश्वास के आंकलन से राम कृष्णा के भजन बदल गये।

कुसंस्कृति की गंदगी से और तो और बच्चों के केश बदल गये।
फूहड़ता में सनकर सबके भेश बदल गए, परिवेश बदल गये।

भ्रष्टता में सनकर जीवन के पासो का हर दाँव बदल गया।
पश्चिमी सभ्यता में सनकर सचमुच गोकुल का गांव बदल गया।।

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गोकुल कुमार पटेल


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Friday 16 June 2017

एक अबोध बच्चा



एक अबोध बच्चा
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एक अबोध बच्चा, मन का कच्चा।
कैसे सीख लेता है,  खाना, पीना, सोना।
लोग कहते है प्रकृति है,
मुझे लगता है तृप्ति है।
प्यास और भूख का, शरीर के सुख का।

एक अबोध बच्चा, मन का कच्चा।
कैसे सीख लेता है, रोना, धोना, हंसना।
लोग कहते है प्रकृति है,
मुझे लगता है वृत्ति है।
मन के व्याकुलता का, हृदय के अनुकूलता का।

एक अबोध बच्चा, मन का कच्चा।
कैसे सीख लेता है, उठना, बैठना, चलना।
लोग कहते है प्रकृति है,
मुझे लगता है प्रवृत्ति है।
मनुष्य समाज का, समाज के विकास का।

एक अबोध बच्चा, मन का कच्चा।
कैसे सीख लेता है, खेलना, कूदना, दौडना।
लोग कहते है प्रकृति है,
मुझे लगता है वृद्धि है।
दिल के उमंग का, शरीर के हर अंग का।

एक अबोध बच्चा, मन का कच्चा।
कैसे सीख लेता है, तोडना, फोडना, जोडना।
लोग कहते है प्रकृति है,
मुझे लगता है कृति  है।
व्याग्रता, द्वेष, क्रोध का, विकारों के विरोध का।

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गोकुल कुमार पटेल


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Wednesday 22 March 2017

वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।

वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।
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खेलने के लिए सुबह से ही जो बुलाया करते थे,
नाम को छोडकर जो कई उपनामों से चिढाया करते थे,
वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।

मिल कर एक साथ जो स्कूल जाया करते थे,
बैठ कर एक साथ, बाँटकर जो खाना खाया करते थे,
वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।

टेढी मेढी लकीरों से मेरा चित्र जो बनाया करते थे,
छिपाकर पेन,पेंसिल, पुस्तक जो मुझे सताया करते थे,
वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।

छिपकर किसी के भी पीछे जो मुझे डराया करते थे,
डरने पर रात में घर तक जो छोडने आया करते थे,
वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।

कंधों पर उठाकर जो पेडों पर चढा़या करते थे,
टहनियों पर बिठा कर जो झुला झुलाया करते थे,
वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।

हाथ पकड़ कर जो कीचड़ पर चलाया करते थे,
गुलाल बनाकर जो धुल उडाया करते थे,
वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।

छोटी-छोटी बातों से नाराज़ हो जाया करते थे,
और एक मुस्कान से जो मान भी जाया करते थे,
वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।

नाराज हो जाता था और मैं जब कभी,
मिलकर सब मुझे मनाया करते थे,
वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।

मेरी सही गलत आदतों को जो बताया करते थे,
कभी-कभी मेरी गलतियों को भी जो छिपाया करते थे,
वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।

मम्मी पापा के डाँट से जो मुझे बचाया करते थे,
दुख में गले लगा कर जो अपनापन जताया करते थे,
वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।

उल्टी-पुल्टी चुटकुले जो सुनाया करते थे,
अजीब-अजीब हरकतों से जो हँसाया करते थे,
वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।

चुपके से दबे पाँव जो पीछे से आ जाया करते थे,
जिनके याद में रह रहकर अब भी पीछे पलट जाया करता हूँ,
वो दोस्त मुझे अब बहुत याद आते है।

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गोकुल कुमार पटेल


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Tuesday 14 March 2017

होली मनाओ सब मिल जुल

"होली मनाओ सब मिल जुल"
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होली के पावन पर्व पर मेरी भी लाईने है चंद,
लाईनों में आपके लिए, मेरी शुभकामनाएं है बंद।
बंद है पैकेटों में जैसे अबीर गुलाल और रंग,
रंग में मिला कर भेज रहा हूँ प्यार का सुगंध।
सुगंध जब फैलेगी हवा के साथ उड-उड बहार में,
बहार झूम उठेगा होली के इस रंग-बिरंगी त्यौहार में।
त्यौहार से खुशियां ही खुशियां आए आपके परिवार में।
परिवार ढेर सारा पकवान, गुजिया और मिठाई बनाए,
पकवान, गुजिया और मिठाई खाएं, खाकर जश्न मनाएं ।
जश्न मनाएं रंग लगाए, रंग लगाए नीला, पीला, लाल,
पीला, लाल हो जाएं औऱ साथ में रखे प्रकृति का ख्याल।
प्रकृति का हमेशा ख्याल रखो, न जाना भुल, कहे गोकुल,
खूब धूम मचाओ, रंग जमाओ, होली मनाओ सब मिल जुल।

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गोकुल कुमार पटेल

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Friday 3 March 2017

बढती दूरियों का राज

बढती दूरियों का राज
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रोज़ याद न कर पाऊँ तो,
ये मत समझना कि,
मैं आप लोगों को भुल गया।

रोज़ कुछ लिख न पाऊँ तो,
ये मत समझना कि,
मैं आप लोगों को भुल गया।।

मुझे हर रिश्ते, हर नाते याद है
हर दोस्त और,
दोस्तों की हर लफ्ज, हर बातें याद है ।

बस कभी-कभी इस जिंदगी का,
अकेलापन मुझे खामोश कर जाती है।

बस कभी-कभी इस जिंदगी की,
परेशानियों से खामोश हो जाता हूँ ।

तब बेबसी मुझे तन्हा कर जाती है,
और खुद को सुलझाने की कोशिश में,
खुद ही उलझन बन जाता हूँ।

तब न चाह कर भी मजबूर हो जाता हूँ,
छोड़ कर सबसे अलग रहने को,
तब लाचारी में सबसे अपरिचित
औऱ अनजान बन जाता हूँ।

और तभी तो सोचता हूँ अक्सर,
क्या खोया हूँ, क्या पाया हूँ इस ज़माने में।

बस मेरी जिंदगी तो गुजर रही है सिर्फ,
दो वक़्त की रोटियां कमाने में।
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गोकुल कुमार पटेल

Monday 16 January 2017

मम्मी मुझे स्कूल जाना है

"मम्मी मुझे स्कूल जाना है"












मम्मी सुबह जल्दी जगा देना,
मुझे स्कूल जाना है।
मम्मी सुबह जल्दी नहला देना,
मुझे स्कूल जाना है।
मम्मी कपड़ा पहना देना,
मुझे स्कूल जाना है।
मम्मी रोटी जल्दी बना देना,
मुझे स्कूल जाना है।
मम्मी पुस्तक पेन दिला देना,
मुझे स्कूल जाना है।
मम्मी अक्षर दिया टीचर ने,
मम्मी शब्द लिखना सीखा देना,
मुझे स्कूल जाना है।
मम्मी ज्ञान बँट रहा स्कूल में
मम्मी शिक्षा का दीप जला देना,
मुझे स्कूल जाना है।
मम्मी होमवर्क मिलता है स्कूल से,
मम्मी होमवर्क हल करा देना,
मुझे स्कूल जाना है।
पाठ पुरा तब अपना करूंगा,
पुरा तब आपका हर सपना करुंगा।
मम्मी सुबह जल्दी जगा देना,
मुझे स्कूल जाना है।
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गोकुल कुमार पटेल