मन: पटल
ख़ामोशी लिए,
मन देख रहा है l
पाशों की चाल वही,
सांसो में अटकी चीत्कार वही l
मिश्रित लावों को, फेंक रहा है,
मन देख रहा है l
पथराई सीप वही,
चातक की टीस वही l
तपती देह को सेंक रहा है,
मन देख रहा है l
(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है,
आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l )
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