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Wednesday 22 May 2013

“एक राहनुमा की मुझे तलाश है”

“एक राहनुमा की मुझे तलाश है”

किसे कहूँ मैं अपने मन की बात l
कैसे कहूँ मैं अपने मन की बात l l
कोई समझता नहीं,
कोई समझने की कोशिश करता नहीं l
सरपट भाग रहे है अंधेरों में,
राहों से भटक कर,
एक पल के लिए कोई ठहरता नहीं l l
कभी तो थकेंगें, कभी तो रुकेंगे,
ये मैंने जाना है l
उनके पीछे पीछे दौड़ रहा हूँ,
मैंने हार नहीं माना है l l
कब तक दौड़ता रहूँगा,
उनके पीछे,
अनजानी ये आस है l
तब भी समय न उनके पास था, 
न अब ही समय उनके पास है l l
अब तो भागते भागते,
खुद ही भटक गया हूँ,
आँखें है पथराई, लवों पे प्यास है l
किसे कहूँ, कैसे कहूँ मैं अपने मन की बात l l
कोई तो रास्ता सुझा दे मेरा,
एक राहनुमा की मुझे भी तलाश है l l


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गोकुल कुमार पटेल

Saturday 4 May 2013

क्या? कभी? ऐसा? मेरा सपनों का गांव होगा?


क्या? कभी? ऐसा?
मेरा सपनों का गांव होगा?

साफ सुथरी होगी चहुँ ओर,
कही पर न गन्दगी होगा l
चिड़ियों की मधुर चहचाहट होगी
कदम-कदम पर वृक्षों का छांव होगा l l
सोना उगलेंगा तब धरती
मिटटी का न कहीं कटाव होगा l
चारों तरफ से शोंधी खुशबू आएगी,
हर घर में हलवा-पूरी, पुलाव होगा l l
न कोई रोयेगा, न कोई भूखे पेट सोयेगा
मीठी-मीठी नींद में सुनहरे सपने हर कोई संजोयेगा,
स्वच्छ जल होंगें, स्वच्छ गगन होगा l
स्वच्छ सड़कें होंगी, स्वच्छ जीवन होगा l l
शिक्षा का दीप जलेगा, बच्चे-बच्चियां सभी पढेंगे l
जाती-पाती, उंच-नीच के भेदभाव के बिना ये बढेंगें l l
न कोई भ्रष्ट होगा, न कोई भ्रष्टाचार होगा
न कोई शोषित होगा, न कोई धार्मिक व्यापार होगा
चारों तरफ खुशियों का उन्मुक्त बहाव होगा
क्या? कभी? ऐसा? मेरा सपनों का गांव होगा?



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गोकुल कुमार पटेल