“एक
राहनुमा की मुझे तलाश है”
किसे
कहूँ मैं अपने मन की बात l
कैसे
कहूँ मैं अपने मन की बात l l
कोई
समझता नहीं,
कोई
समझने की कोशिश करता नहीं l
सरपट
भाग रहे है अंधेरों में,
राहों
से भटक कर,
एक
पल के लिए कोई ठहरता नहीं l l
कभी
तो थकेंगें, कभी तो रुकेंगे,
ये
मैंने जाना है l
उनके
पीछे पीछे दौड़ रहा हूँ,
मैंने
हार नहीं माना है l l
कब
तक दौड़ता रहूँगा,
उनके
पीछे,
अनजानी
ये आस है l
तब
भी समय न उनके पास था,
न
अब ही समय उनके पास है l l
अब
तो भागते भागते,
खुद
ही भटक गया हूँ,
आँखें
है पथराई, लवों पे प्यास है l
किसे
कहूँ, कैसे कहूँ मैं अपने मन की बात l l
कोई
तो रास्ता सुझा दे मेरा,
एक
राहनुमा की मुझे भी तलाश है l l
(इन
रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार
में l)
गोकुल
कुमार पटेल