गुरुदेवजी
का साक्षात्कार - II
सिद्धाश्रम
- गुरु वाणी
सिद्धाश्रम शब्द से ही यह बोध होता है की यह दो
शब्दों के युग्मों से बना है - सिद्ध और आश्रम l सिद्ध अर्थात पूर्ण या पवित्र और आश्रम
अर्थात वह स्थान जहाँ जाकर परिश्रम करने की शिक्षा प्राप्त किया जाये या परिश्रम किया
जाये वह स्थान आश्रम कहलाता है l जिससे व्यक्ति के जीवन जीने की शैली का समुचित विकास
होता है l हिन्दू धर्म में व्यक्ति के जीवन जीने की शैली को चार भागों में बांटा गया
है l १. – ब्रम्हाचार्य, २. – गृहस्थ, ३. – वानप्रस्थ और ४. - सन्यास और इन्हें ही
आश्रम की संज्ञा दी जाती है l जिनका पालन कर मनुष्य अपने पुरुषार्थ में वृद्धि करने
के साथ-साथ पूर्णत्व को प्राप्त कर नर से नारायण बन सकता है l या इसे यों कह सकते है
कि नर से नारायण बनने की प्रकिया का नाम ही आश्रम है l
इस प्रकार हम कह सकते है कि पूर्ण या पवित्रता को प्राप्त करने
वाला वह पुन्य भूमि जहाँ जाकर परिश्रम या साधनाओं के द्वारा हम पूर्णत्व को या सिद्धित्व
को प्राप्त कर सकें सिद्धाश्रम कहलाता है l सिद्ध योगियों ने काल चक्र के प्रभाव को
समझा और उसके प्रभाव से मुक्त रहने व सृष्टि के सृजन करने के लिए अपने तपो बल से पृथ्वी
पर ऐसे ही आश्रम का निर्माण किया है l कहा जाता है उसके सीमा क्षेत्र में प्रकृति का
कोई भी नियम, कोई भी सिद्धांत लागु नहीं होता है, इंसान जन्म मरण के चक्र से ऊपर उठ
जाता है और सालों या हजारों सालों तक साधनाएँ कर सकता है l वस्तुतः देखा जाये तो पृथ्वी
पर स्थित उसी स्वर्ग का नाम ही सिद्धाश्रम है l
वर्त्तमान समय में उस दिव्य एवं पावन स्थलीय सिद्धाश्रम का अस्तित्व
हिमालय में आज भी पूर्ण रूप से सुरक्षित है l योगी, तपस्वी और तांत्रिक इसीलिए हिमालय में तप और साधना करने
के लिए लालायित रहते है l परन्तु सदगुरुदेव की असीम अनुकम्पा, आशीर्वाद और साधना के
बिना उस दिव्य एवं पावन भूमि में प्रवेश किया ही नहीं जा सकता है l इसीलिए गृहस्थ लोगों के लिए पारमेष्ठीय माता-पिता और गुरुचरणों
को भी सिद्धाश्रम कहा गया है l जिनकी श्रद्धा, विश्वास और निश्वार्थ भाव से सेवा कर
निश्चय ही मनुष्य जन्म-मरण के चक्र से ऊपर उठ कर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है l
(इन
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में l)
गोकुल कुमार पटेल