मेरे ही अपने हैं
जिनका मैं अपना था, वो भी मेरे ही अपने हैं।
जिनका मैं अपना हूँ, वो भी मेरे ही अपने हैं।
जिनको अपना समझता था, वो भी मेरे ही अपने हैं।
जिनको अपना समझता हूँ, वो भी मेरे ही अपने हैं।
जिन्होंने अपना माना, वो भी मेरे ही अपने हैं।
जिन्होंने अपना समझा, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ मुझसे खुश थे, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ मुझसे खुश हैं, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ मुझसे नाराज थे, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ मुझसे नाराज है, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ ने मुझे छोड़़ दिया, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ को मैंने छोड़़ आया, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ से रिश्ता तोड़ आया, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ से रिश्ता आज भी है, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ मुझे याद करते थे, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ मुझे याद करते है, वो भी मेरे ही अपने हैं।
जिनका मैं सपना था, वो भी मेरे ही अपने हैं।
जिनका मैं सपना हूँ, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ को मैंने भुला दिया, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ मुझे भुल गये है, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ से दोस्ती कल तक था, वो भी मेरे ही अपने हैं।
कुछ से दोस्ती आज भी हैं, वो भी मेरे ही अपने हैं।
जिन्दगी के इस भागदौड़ में कुछ सबसे दूर हो गये हैं।
कंधे से कंधा मिलाने कि चाह में कुछ मजबूर हो गये हैं।
जो रिश्ता जो प्यार कल तक सबसे था वो आज भी हैं।
इच्छाएँ होती है मिलने की, सबका इंतजार आज भी हैं।
रवैयों से बिखरा हूँ पर अब भी रिश्तों की ठूंठ बाकी हैं।
पीने को तो अमृत भी है पर प्यार की एक घूँट बाकी हैं।
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गोकुल कुमार पटेल
(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में।)
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