बचपन के दोस्त
बचपन में कुछ दोस्तों संग अकसर ही,
तालाब के एक घाट पर जाया करते थे।
बिना बुरे विचारों के लडका-लडकी,
सब एक साथ निर्वस्त्र नहाया करते थे।
एक-दूसरे पर हाथों से पानी छिडकते थे,
तो कभी-कभी मुँह से ही पींक लगाया करते थे।
सिखते थे तैरने का हूनर कई कलाबाजियों से,
तैर कर फिर खंभे तक तो कभी-कभी,
आर-पार भी जाया-आया करते थे।
बचपन में कुछ दोस्तों संग अकसर ही,
तालाब के एक घाट पर जाया करते थे।
बिना बुरे विचारों के लडका-लडकी,
सब एक साथ निर्वस्त्र नहाया करते थे।
कभी एक-दूसरे के कंधे से कूदते थे,
तो कभी बरगद,पीपल के टहनी से,
छलाँग लगाया करते थे।
दोस्ती के नाम पर फेंक देते थे,
वो दस पैसे का सिक्का,
ढूँढने के लिए डूबक-डूबककर,
फिर जी जान लगाया करते थे।
बचपन में कुछ दोस्तों संग अकसर ही,
तालाब के एक घाट पर जाया करते थे।
बिना बुरे विचारों के लडका-लडकी,
सब एक साथ निर्वस्त्र नहाया करते थे।
ठंडी में नहाने का मजा कुछ और था,
कभी हल्के-हल्के, कभी धीरे-धीरे,
पानी में कदम बढाया करते थे।
तो कभी किनारे से ही दौडकर,
पानी में छपाक से गिर जाया करते थे।
लुकाछुपी खेलते थे पानी के अंदर,
तो कभी कागज की नाव चलाया करते थे।
न सुर जानते थे, न ताल जानते थे,
पानी के ऊपर फिर भी थाप लगाया करते थे।
बचपन में कुछ दोस्तों संग अकसर ही,
तालाब के एक घाट पर जाया करते थे।
बिना बुरे विचारों के लडका-लडकी,
सब एक साथ निर्वस्त्र नहाया करते थे।
हम लोगों में तैरने की भी परीक्षा होती थी,
गणपति, दूर्गा पूजा के उत्सवों में अकसर,
एक नारियल के लिए सारे प्रतियोगी,
एक साथ तालाब में कूद जाया करते थे।
कोई भी जीते उससे फर्क नही पडता था,
क्योकिं नारियल को सब,
मिल बाँटकर ही खाया करते थे।
बचपन में कुछ दोस्तों संग अकसर ही,
तालाब के एक घाट पर जाया करते थे।
बिना बुरे विचारों के लडका-लडकी,
सब एक साथ निर्वस्त्र नहाया करते थे।
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