क्या? कभी? ऐसा?
मेरा सपनों का गांव होगा?
साफ सुथरी होगी
चहुँ ओर,
कही पर न गन्दगी
होगा l
चिड़ियों की
मधुर चहचाहट होगी
कदम-कदम पर
वृक्षों का छांव होगा l l
सोना उगलेंगा
तब धरती
मिटटी का न
कहीं कटाव होगा l
चारों तरफ से
शोंधी खुशबू आएगी,
हर घर में हलवा-पूरी,
पुलाव होगा l l
न कोई रोयेगा,
न कोई भूखे पेट सोयेगा
मीठी-मीठी नींद
में सुनहरे सपने हर कोई संजोयेगा,
स्वच्छ जल होंगें,
स्वच्छ गगन होगा l
स्वच्छ सड़कें
होंगी, स्वच्छ जीवन होगा l l
शिक्षा का दीप
जलेगा, बच्चे-बच्चियां सभी पढेंगे l
जाती-पाती,
उंच-नीच के भेदभाव के बिना ये बढेंगें l l
न कोई भ्रष्ट
होगा, न कोई भ्रष्टाचार होगा
न कोई शोषित
होगा, न कोई धार्मिक व्यापार होगा
चारों तरफ खुशियों
का उन्मुक्त बहाव होगा
क्या? कभी?
ऐसा? मेरा सपनों का गांव होगा?
गोकुल
कुमार पटेल
No comments:
Post a Comment