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Saturday 11 November 2017

महबूब


महबूब




अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ  ll
वो हँसी दिलरुबा, दिलकशी होगी,
मेरा महबूब, मेरा हमदम महजबी होगी
आँख हो जिसके छलकते प्याले
जाम को जिसके , पीकर मैं झूमता हूँ
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll

होंठ जिसके खिलता कमल हो,
फुल से मैं प्यार को पूजता हूँ  l
हँसने से जिसके बिखरे मोती,
मोती से मैं सपनों की माला संजोता हूँ  l
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll

बिंदिया हो जिसके चाँद सितारे  l
जिनसे बने सरे प्यारे नज़ारे  l
जुल्फ हो जिसके काले काले  l
ओढ़कर सोये जिसे उजाले  l 
आवाज से जिसके मिठास टपके ,
मिठास को मैं जीवन में घोलता हूँ  l
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ  ll

नख से शिख तक जिसके अदा ही अदा हो  l 
अदा भी ऐसी , जो सबसे जुदा हो  l
उस पर मेरा दिल फ़िदा हो  l
ऐसे सपनों के परी को, मैं दिन में खोजता हूँ l
अक्सर तन्हाईयों में, मैं ये सोचता हूँ l
हसीनाओं के भीड़ में, एक अपना हमसफ़र खोजता हूँ ll  


(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l)

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