"मुझे भी भगवा लहराने दो"
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देशप्रेम की भावना मन में मेरे उत्साह भर रहा।
कतरा कतरा खून रगो का मुझको हर्षित कर रहा।
सारा अंबर गुंजित होगा भारतमाता के जय जयकारो से।
जय हिन्द वन्दे मातरम् का नारा मुझे भी लगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।
सारा जहाँ जहाँ हिन्दूत्व का झंडा लहरा रहा।
हिन्दू हिन्दू पर ही यहाँ डंडा बरसा रहा।
कुछ तो नादान है कुछ नादान बने बैठे है।
कुछ तो मुस्लिमों का फरमान बने बैठे है।
कुंठित मन मुक्त होगा शंकाओं के घेरो से।
धधक उठेगी ज्वाला कोयले के ढेरों से।
झूठ कपट का बादल छठ जाने दो।
राम कृष्ण का भजन मुझे भी सुनाने दो।
जय हिन्द वन्दे मातरम् का नारा मुझे भी लगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।
शैतान झूठ फरेब का हर सामान लिए बैठा है।
बहरूपिया गली गली में भगवान बना बैठा है।
पाखंडी आडम्बरो से समाज को दूषित कर रहा।
धूर्तता से धुर्त अबोध मन में मीठा जहर भर रहा।
भेद नहीं कर पा रहा मन धार्मिक मतभेदों में।
ज्ञान सोई हुई है अपने ही पुराणों और वेदों में।
मानवता का पाठ अब सबको पढाना होगा।
चीर निंद्रा से सत्य को अब जगाना होगा।
ढोल नगाडा और मृदंग मुझे भी बजाने दो।
जय हिन्द वन्दे मातरम् का नारा मुझे भी लगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।
रखो विश्वास, छोडो न आस।
जब तक रहेगी तन में साँस।
रघुकुल की गरिमा कलंकित न हो पायेगी।
कुरूवंश की घटना दूबारा घटित न हो पायेगी।
विक्रमादित्य का आह्वान करूंगा।
अखंड भारत का सपना साकार करूंगा।
कृष्ण भक्ति में रमकर,
गीता के उपदेशों का विस्तार करूंगा।
पांचजन्य पर एक बार फिर से मुझे भी फूंक लगाने दो।
जय हिन्द वन्दे मातरम् का नारा मुझे भी लगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।
बलिदानी रक्त मुझे भी पुकारती है।
अंबर का वक्त मुझे भी निहारती है।
हौसले से मेरा भी रक्त उफन रहा,
रोम-रोम मेरा भी, मुझको धिक्कारती है।
अब तो मैंने ठान लिया है,
लक्ष्य अपना जान लिया है।
अब तो दीपक राग गाऊँगा,
या खुद ही दीप बन जाऊँगा।
अखंड ज्योत के इस प्रकाश से विश्व को जगमगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।
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गोकुल कुमार पटेल
(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में ।)
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कर्तव्य पथ पर साथ चलूंगा, मुझे भी साथ आने दो।
पल भर ठहर जाओ, मुझे भी केसरिया सजाने दो।देशप्रेम की भावना मन में मेरे उत्साह भर रहा।
कतरा कतरा खून रगो का मुझको हर्षित कर रहा।
सारा अंबर गुंजित होगा भारतमाता के जय जयकारो से।
जय हिन्द वन्दे मातरम् का नारा मुझे भी लगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।
सारा जहाँ जहाँ हिन्दूत्व का झंडा लहरा रहा।
हिन्दू हिन्दू पर ही यहाँ डंडा बरसा रहा।
कुछ तो नादान है कुछ नादान बने बैठे है।
कुछ तो मुस्लिमों का फरमान बने बैठे है।
कुंठित मन मुक्त होगा शंकाओं के घेरो से।
धधक उठेगी ज्वाला कोयले के ढेरों से।
झूठ कपट का बादल छठ जाने दो।
राम कृष्ण का भजन मुझे भी सुनाने दो।
जय हिन्द वन्दे मातरम् का नारा मुझे भी लगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।
शैतान झूठ फरेब का हर सामान लिए बैठा है।
बहरूपिया गली गली में भगवान बना बैठा है।
पाखंडी आडम्बरो से समाज को दूषित कर रहा।
धूर्तता से धुर्त अबोध मन में मीठा जहर भर रहा।
भेद नहीं कर पा रहा मन धार्मिक मतभेदों में।
ज्ञान सोई हुई है अपने ही पुराणों और वेदों में।
मानवता का पाठ अब सबको पढाना होगा।
चीर निंद्रा से सत्य को अब जगाना होगा।
ढोल नगाडा और मृदंग मुझे भी बजाने दो।
जय हिन्द वन्दे मातरम् का नारा मुझे भी लगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।
रखो विश्वास, छोडो न आस।
जब तक रहेगी तन में साँस।
रघुकुल की गरिमा कलंकित न हो पायेगी।
कुरूवंश की घटना दूबारा घटित न हो पायेगी।
विक्रमादित्य का आह्वान करूंगा।
अखंड भारत का सपना साकार करूंगा।
कृष्ण भक्ति में रमकर,
गीता के उपदेशों का विस्तार करूंगा।
पांचजन्य पर एक बार फिर से मुझे भी फूंक लगाने दो।
जय हिन्द वन्दे मातरम् का नारा मुझे भी लगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।
बलिदानी रक्त मुझे भी पुकारती है।
अंबर का वक्त मुझे भी निहारती है।
हौसले से मेरा भी रक्त उफन रहा,
रोम-रोम मेरा भी, मुझको धिक्कारती है।
अब तो मैंने ठान लिया है,
लक्ष्य अपना जान लिया है।
अब तो दीपक राग गाऊँगा,
या खुद ही दीप बन जाऊँगा।
अखंड ज्योत के इस प्रकाश से विश्व को जगमगाने दो।
मैं भी हूँ हिन्दू की संतान, मुझे भी भगवा लहराने दो।
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गोकुल कुमार पटेल
(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में ।)
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