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Saturday 7 August 2021

मुखिया के बात

 मुखिया के बात


क बताओ संगवारी तुमन ल, मुखिया के बात।
कछु कहत नी बने महु खा दारे हो ओकर संग भात।
ओकरे बर, तब ले, नून के हक ल जतात हावो।
चुकता होगिस कस लागत हे, त बात ल बतात हावो।
का-का करथें अऊ, वो सब झन संग किसे रथे।
मन लगाके सुनहिया, ओमन भीतर म का-का कथे।
कथे ते आपन ल सोच, मोला आपन के सोचन दे।
झन चिल्ला, अऊ मोला थोरकस कोचन दे।
ते आपन घर जा, मे आपन घर ल देखत हावो।
चुपचाप रह, मे तोला नीही गांव ल नोचत हावो।
मुखिया, नेता मन के बारा, भजिया ल ते का छान बे
बासी के खवैय्या, ते राजनीति के बघारे ल का जान बे।
सरकार के सब जोजना ल, मे तो गांव मे लानत हो।
कतक भाग दौड करे बर लागत हे, ओला मे जानत हो।
तरी ले ऊपर तक, सब ल थोर-थोर खवाय बर पडथे।
काकर गोड धरे बर त, काकर कना मुड नवाय बर पडथे।
कतको करबे तब ले तो, सब मे कुकुर बिलाई होत हे।
फिर भी देखत हस न, हामर गांव के भलाई होत हे।
ता मोर बात ल सुन, समझ अऊ मोर बात ल मान।
महू तोर घरेच के ओ गा, मोला थोरकस तहूँ पहचान।
मोर बात ल सुन बे त भई एक ठी बात बताहा।
चुपे रबे ता, किसनों करके थोरकस तोरो घर पहुँचाहा।
थोर-थोर करके खाबो, नीता सब झन जही भडक।
ओकर ले आधा पैसा के घर बनाबो अऊ आधा के सडक़।
काकरो करा झन कबे, की मे अतक-अतक खाय हावो।
तहु तो जानत हस न, पद ल कतक पैसा मे पाय हावो।
पद पाय हावो त, थोरकस गीत महू ल गान दे।
ते कुकुर कस कनपिया र, अऊ मोला थोरकस खान दे।
तोला क चाहिये बता, तोला भी सब कुछ दा हा।
लेकिन भई थोरकस तो, तोर करा ले भी खा हा।
ले बता शौचालय लेबे की, इंदिरा आवास के घर लेबे।
ते देख ले अऊ बताबे, ओ डहर लेबे की ये डहर लेबे।
कमीशन लेबे की, तोरो बर बीपीएल कारड बनाहा।
तरई ल ठिका म लेबे की, तोर बर बोर खोनदवाहा।
लेकिन हामन के दूकान म, सब के पैसा निश्चित हावै।
इसने कोई नी ये जो हर, हामन करा ले बिचकिस हावै।
देखत तो र ऐती के पैसा ला, मे ओती किसे चालत हो।
अऊ सबके कपार के पीरा ल, गोड मे किसे उतारत हो।
जब तक रिहि हामन करा ऊपर वाला मन के हाथ के साथ
त फिकर नीकरा अऊ बोकलात ले खावा डरेके नीये बात।
अइसने-अइसने तो हामर गांव के जतन होत हावै।
अऊ भीतर-भीतर ले हामर गांव के पतन होत हावै।
अब मुखिया ल का कबो, किसे जाबो ओकर तीर।
आखा बाखा मे चार झिन लटके रथे, मुखिया हे अमीर।
का करिहा सब के संग ह एक पैसा के नी सुहात हावै।
अऊ मोर मन के पीरा हर अब, मोर कपार में दुखात हावै।
एकठी बात जाने संगवारी कछु करे बर हे त मुखिया बन।
अऊ नीनधा लउठी कस खडे रह खालहे झुक बे झन।
संगवारी हो मोर मन के बात ल कोनहो ल झन किहा।
ऐ कविता ल कविता कस पढिया अऊ आनंद लिहा।
काबर की ऐ मा कतक सच्चाई ऐओला मे नी जानत हावो
लेकिन आज खाय बर बलाय हावे त मे फिर जावत हावो
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गोकुल कुमार पटेल

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