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Sunday 29 March 2020

अपूर्ण

अपूर्ण
 
 तेरी खूबसुरती ही नहीं 
तेरी हर अदा ही मुझे प्यारी लगती है 
तेरे हुश्न की तारीफ मैं क्या करूँ 
तु मुझे चाँद से भी न्यारी लगती है 
अब भी हर पल तेरे आने का इंतज़ार रहता है 
अब भी तुमसे बात करने को दिल बेकरार रहता है
 ये जानते हुए कि ये सब अब सिर्फ खयाली बातें है 
 सच्चाई है तो बस इतना कि 
इस जीवन में अब, चंद ही मुलाकातें है 
अब न तु मुझे मिलेगी, 
अब न मैं तुम्हें मिलूँगा 
बिन धडकन के ये साँस चलेंगी 
अब बिन साँसो के ये जीवन जी लूंगा 
सब कुछ बदल चूका है, 
मौसम की करवटों से 
अधरो पर फिर भी कोई बात रुकी है 
जबकि मैं किसी और का हो चुका हूँ 
तु किसी और की हो चुकी हैं
 फिर ये तडप क्यों है, ये प्यार क्यों हैं 
तेरे आने का अब भी इंतज़ार क्यों है 
कैसे समझाऊँ इस दिल को ये मानता ही नहीं
 कहता हैं तु कभी पराई हो नहीं सकती है। 
तु तो अब भी जान हमारी लगती हैं।
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गोकुल कुमार पटेल 
 (इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में।)

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