नया साल मुझे भी मनाना होगा
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माफ कर देना मुझे हे भारती।
निर्लज्जता का मुखौटा मुझे भी चढाना होगा।
छोड़कर निज संस्कारों को।
पाश्चात्य सभ्यता मुझे भी अपनाना होगा।
अंजान बन यथार्थ से।
झूठ फरेब का आडम्बर मुझे भी रचाना होगा।
भुलकर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा।
एक जनवरी को नया साल मुझे भी मनाना होगा।
सुसंस्कृति संग आगे जो बढना चाहूँ।
आगे बढ न पाऊँगा।
कुसंस्कृति की हाथ पकड़।
कदम से कदम मुझे भी बढाना होगा।
दिखावे की बलि बेदी पर
तीज त्यौहारों की बलि मुझे भी चढाना होगा।
माफ कर देना मुझे हे भारती।
निर्लज्जता का मुखौटा मुझे भी चढाना होगा।
भुलकर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा।
एक जनवरी को नया साल मुझे भी मनाना होगा।
मृगमरीचिका की तरह दौड़ रहे।
किसी के रोके कब रूके है।
बदलने की चाह में।
धोती कुर्ता कब के छोड़ चुके है।
रिश्तों का लिहाज नहीं।
बुजुर्गों का सम्मान नहीं।
धर्म अधर्म का फेर नहीं।
राम कृष्ण का नाम नहीं।
आरती भजन को दरकिनार कर।
मन की पीडा को मुझे भी मन में दबाना होगा।
माफ कर देना मुझे हे भारती।
निर्लज्जता का मुखौटा मुझे भी चढाना होगा।
भुलकर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा।
एक जनवरी को नया साल मुझे भी मनाना होगा।
सबको पता है सब जानते है।
चुप है वे सबकुछ जानकर।
सब ही बधाई भेज रहे।
अपना मुझको मानकर।
कैसे मैं दुत्कार दूँ सगे संबंधी, दोस्त यार को।
कैसे मैं ठुकरा दू उनके स्नेह, प्यार, दूलार को।
विवशता में ही सही अपनापन मुझे भी जताना होगा।
माफ कर देना मुझे हे भारती।
निर्लज्जता का मुखौटा मुझे भी चढाना होगा।
भुलकर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा।
एक जनवरी को नया साल मुझे भी मनाना होगा।
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गोकुल कुमार पटेल
(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में।)
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