बढती दूरियों का राज
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रोज़ याद न कर पाऊँ तो,
ये मत समझना कि,
मैं आप लोगों को भुल गया।
रोज़ कुछ लिख न पाऊँ तो,
ये मत समझना कि,
मैं आप लोगों को भुल गया।।
मुझे हर रिश्ते, हर नाते याद है
हर दोस्त और,
दोस्तों की हर लफ्ज, हर बातें याद है ।
बस कभी-कभी इस जिंदगी का,
अकेलापन मुझे खामोश कर जाती है।
बस कभी-कभी इस जिंदगी की,
परेशानियों से खामोश हो जाता हूँ ।
तब बेबसी मुझे तन्हा कर जाती है,
और खुद को सुलझाने की कोशिश में,
खुद ही उलझन बन जाता हूँ।
तब न चाह कर भी मजबूर हो जाता हूँ,
छोड़ कर सबसे अलग रहने को,
तब लाचारी में सबसे अपरिचित
औऱ अनजान बन जाता हूँ।
और तभी तो सोचता हूँ अक्सर,
क्या खोया हूँ, क्या पाया हूँ इस ज़माने में।
बस मेरी जिंदगी तो गुजर रही है सिर्फ,
दो वक़्त की रोटियां कमाने में।
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(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में |)
गोकुल कुमार पटेल
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रोज़ याद न कर पाऊँ तो,
ये मत समझना कि,
मैं आप लोगों को भुल गया।
रोज़ कुछ लिख न पाऊँ तो,
ये मत समझना कि,
मैं आप लोगों को भुल गया।।
मुझे हर रिश्ते, हर नाते याद है
हर दोस्त और,
दोस्तों की हर लफ्ज, हर बातें याद है ।
बस कभी-कभी इस जिंदगी का,
अकेलापन मुझे खामोश कर जाती है।
बस कभी-कभी इस जिंदगी की,
परेशानियों से खामोश हो जाता हूँ ।
तब बेबसी मुझे तन्हा कर जाती है,
और खुद को सुलझाने की कोशिश में,
खुद ही उलझन बन जाता हूँ।
तब न चाह कर भी मजबूर हो जाता हूँ,
छोड़ कर सबसे अलग रहने को,
तब लाचारी में सबसे अपरिचित
औऱ अनजान बन जाता हूँ।
और तभी तो सोचता हूँ अक्सर,
क्या खोया हूँ, क्या पाया हूँ इस ज़माने में।
बस मेरी जिंदगी तो गुजर रही है सिर्फ,
दो वक़्त की रोटियां कमाने में।
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गोकुल कुमार पटेल
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