फिल्मों की
दुनिया तो वेश्यालय है
मंजिल
के तलाश में, झूटी शान के आस में,
देखकर
चकाचौंध को पास में।
खींचे चले आते है लोग मिथ्याभास में।
जैसे
वहां कोई देवालय है।
सच
मानिये फिल्मों की दुनिया तो वेश्यालय है।
जहाँ
कला कब की मर चुकी है
जहाँ
अब मन से न कोई कलाकार होता है
जहाँ
सच तो बस ये है,
जहाँ
कला के नाम पर सिर्फ व्यापार होता है
जहाँ
फूहड़ता परोसती गानों में,
न
सुर है, न ताल है और न ही लय है।
फिल्मों
की दुनिया तो वेश्यालय है
जहाँ
रंगीलो की रंगीन रात होती है।
जहाँ
जगमगाते सतहों पर नंगी नाच होती है।
जहाँ
सिसकियों में रात गुजारे जाते है।
जहाँ
मुखौटा पहनकर नथ उतारे जाते है।
वेश्यावृत्ति
का वो विद्यालय है
फिल्मों
की दुनिया तो वेश्यालय है।
जहाँ
सास, बहु और ननंद को लड़ाया जाता है।
जहाँ
बेटी के बाप को ही गुंडा बताया जाता है।
जहाँ
रिश्तों का मजाक बनाया जाता है।
जहाँ
धर्म के नाम से लोगों को बहकाया जाता है।
धर्मांधों
का वो आलय है।
फिल्मों
की दुनिया तो वेश्यालय है।
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