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Saturday 10 October 2015

“दहशत भरी रातें”

“दहशत भरी रातें”















अफवाह नहीं, है ये सत्य कहानी,
२०१५ में अप्रैल मई का माह ।
घटनाएँ ऐसी जो सबके लवों पर,
ला देती है करुणा भरी आह।
दहशत भरी रातें, तरह तरह की बातें।
खौफनाक रातों में,
निकाल ली जाती है किडनी,
निकाल ली जाती है आँखें।
दहशतगर्दी बेखौफ घूमते है,
हर शख्स को एकांत में ढूंढते है ।
बच्चा, बुड्ढ़ा हो या जवान,
गायब है सबके अधरों से मुस्कान।
सबसे ज्यादा बच्चे घबराने लगे है।
चोर अब जो, बच्चे चुराने लगे है।
डाकुओं का राज है, डाकुओं का जगत है।
लगता है इस खुनी खेल में,
चिकित्सकों की मिली भगत है।
लाशें कभी सड़क, तो कभी झुरमुट में पड़े मिलते है,
उनके जीवन की कभी भरपाई नहीं होती।
पुलिस फाइल पर फाइल बनाती है,
उन पर कोई कारवाही नहीं होती।
यह गिरोह कौन चलाता है,
न जाने कौन इसका सरगना है।
पर एक बात तो तय है,
इस गिरोह में सबका हाथ खून से सना है।
नीयत इनकी पैसे कमाने में होती है,
छोटी छोटी नहीं, यह बड़े पैमाने में होती है।
कौन इसे रोकेगा कौन मानवता का रखवाला बनेगा।
कब चेतना जागेगी कौन हिम्मतवाला बनेगा।
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गोकुल कुमार पटेल

(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l)