कोई तो, कभी तो
कोई तो पढ़ेगा, कभी तो पढ़ेगा ।
मेरे मन के विचारों
को ।।
कोई तो देखेगा
, कभी तो देखेगा ।
टिमटिमाती सितारों
में, प्रज्वलित तारों को ।।
कोई तो चलेगा,
कभी तो चलेगा ।
मेरे सोच की रफ़्तार
से ।।
कोई तो करेगा,
कभी तो करेगा ।
मनुष्यता के अधिकार
से ।।
कोई तो बढ़ेगा
, कभी तो बढ़ेगा ।
रौशनी की ओर ,
चीर अंधकार से ।।
कोई तो जागेगा,
कभी तो जागेगा ।
विचारों के झंकारित
झंकार से ।।
कोई तो कहेगा,
कभी तो कहेगा ।
मौन से मेरे शब्दों
को लयबद्ध ।।
कोई तो लिखेगा,
कभी तो लिखेगा ।
तन, मन को झकझोरने
वाले शब्द ।।
कोई तो समझेगा
कभी तो समझेगा
मेरे शब्दों में
छिपे अर्थों को
कोई तो मानेगा
कभी तो मानेगा
निःस्वार्थ से
बने शर्तों को
कोई तो उठेगा कभी
तो उठेगा
गिरकर, सितारों
से ऊपर
कोई तो गढ़ेगा,
कभी तो गढ़ेगा,
साकार
प्रतिमाओं को, कल्पनाओं की मिटटी से,(इन रचनाओं पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l )
गोकुल कुमार पटेल