सुदूर पहाड़ियों
के बीच घास फूस से बना एक छोटा सा आश्रम से गेरुआ वस्त्र पहने एक बौद्ध भिक्षु सा हम
उम्र का एक व्यक्ति बाहर निकला l जिसको देखकर मैंने नमस्कार किया तो उन्होंने भी नमस्कार
का प्रत्योत्तर में नमस्कार कर अपनी बात जारी रखते हुए कहा - गुरूजी के कृपा से मैं
जानता था की आप यहाँ जरुर आओगे l
फिर तो मित्र
आप ये भी जानते होंगें की हम यहाँ क्यों आये है - मैं प्रश्न वाचक दृष्टि से उन्हें
देखने लगा l
अवश्य ?
मुझे
आपके आने का प्रयोजन पता है इसीलिए तो मैंने पहले से ही सारा इंतजाम कर दिया है - ऐसा
कहकर उन्होंने अपने थैले में हाथ डालकर कुछ निकला और मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोले - ये
लो इसे संभाल कर रखना, पूरी जंगल खोजने पर बस इतने ही बीज मिले है l और इतने से तो
आपका काम हो जायेगा l
मैंने
दोनों हाथो से स्वीकारते हुए कहा - मैं आपका यह उपकार कैसे चुकाऊंगा l
इसमें उपकार की क्या बात? ये तो गुरूजी
का आदेश था, सो मैंने अपना कर्तव्य निभाया और आप भी तो गुरूजी का ही कार्य कर, अपना
कर्तव्य निभा रहे है l
वो तो है -
मैंने गंभीरता से हामी भरी l
अच्छा तो मुझे
आज्ञा दीजिये- मैंने नमस्कार करते हुए जाने की अनुमति माँगी l ठीक है जाइये, गुरूजी
का आदेश है तो फिर मैं आपको रोकूंगा भी नहीं, और हाँ जरा संभल कर जाइयेगा - बदले में उन्होंने नमस्कार करते हुए कहा l
मैं उनसे विदा
लेकर बाहर आ गया, चलो मित्रो - मैंने बाहर इंतजार करते हुए तीनो मित्रो से कहा l
जरा ठहरो, अँधेरा
हो रहा है, मैं मशाल तो जला लूँ - एक मित्र ने कहा l
और मशाल जलाकर आगे आगे चलने लगा,
मैं उनके पीछे और दोनों मित्र मेरे पीछे पीछे चलने लगे l ऐसे धीरे -धीरे चलेंगे तो
बहुत देर हो जाएगी - कुछ देर चलने के बाद मेरे पीछे चलने वाले मित्र ने कहा तो फिर
ठीक है, सब दौड़ लगाते है - मशाल थामे हुए मित्र ने कहा l सब दौड़ लगाकर आगे बढ़ने लगे
l अरे! कोई हमारा पीछा कर रहा है - चौथे (सबसे पीछे वाले) मित्र ने कहा l
कौन है? कितने
है? - तीसरे(मेरे पीछे वाले) मित्र ने कहा l
अभी तो दो ही
दिख रहे है - चौथे (सबसे पीछे वाले) मित्र ने कहा l
हम सब एकाएक रुक गये l
चौथे (सबसे पीछे वाले) मित्र ने कहा -अरे -अरे रुको नहीं l
आप
यूँ ही आगे बढ़ते रहें - हम उन्हें थोडा विचलित
करते हैl ऐसा कहकर तीसरे (मेरे पीछे वाले) मित्र और सबसे पीछे वाले मित्र आपस में कुछ
खुसर फुसर करने लगे l
मैंने
पीछे मुड़कर देखा ! तो वे मुझे हाथ के इशारे से आगे बढ़ने संकेत देने लगे l मैं और
मेरे मित्र ने उनके संकेत को समझ कर आगे की ओर ही दौड़ने लगे l पर हमारी नजरें रह रहकर
पीछे मुड़कर उन्हें देख रही थी l वे कुछ देर के लिए वही पर रुके रहे और अचानक वे सीधी
राह को छोड़ कर एक बांये तरफ और दूसरा दांये तरफ दौड़ते हुए झाड़ियों में गायब हो गए
l
मन
में रह-रहकर मित्रों को लेकर चिंता हो रही थी l और हम यूँ ही दौड़ते हुए जा रहे थे,
कुछ समय उपरांत एकाएक सामने के झाड़ियों में से पत्तों की सरसराहट आने लगी, हमारे कान
सचेत हो गए, हमारी नजरें आवाज की दिशा में घूम गई और हमारे पांव की रफ़्तार बढ़ गई, हम
आवाज की दिशा से आगे निकल गए, रास्ते के दोनों तरफ से दो काली परछाई निकली और दोनों
परछाई हमारी ही ओर बढ़ने लगी l हमारी रफ़्तार और तेज हो गई l
अरे
! मित्रों! ठहरो… हम है?
एक जानी पहचानी आवाज हमारे
कानो से टकराई और हमारी रफ़्तार जिस गति से तेज हुई थी उस आवाज ने उसी गति से रुकने
पर विवश कर दिया l हमने पीछे मुड़कर देखा तो पाया की वे हमारे ही मित्र है l
हम
वहां पर खड़े होकर उनका इंतजार करने लगे वे धीरे-धीरे पास आते हुए, हांफते हुए हमें
कहने लगे - अच्छा बेवकूफ बनाया दोनों को , ढूंढ़ रहे होंगे हमें जंगल में l लगता है
आप बहुत थक गये है? कहो तो थोडा रुक कर यही पर विश्राम कर ले - उनको हांफते देखकर मैंने
कहा l अरे! नहीं? धीरे -धीरे चलते है सांसे अपने आप सामान्य हो जायेंगें और कुछ ही
दूर आगे तो एक गांव है वहां थोडा विश्राम कर लेंगें - उन्होंने एक साथ हमें चलने की
अनुमति दे दी l
चारों
एक साथ धीरे-धीरे चलने लगे, कुछ देर तक यूँ ही चलते रहे l
कुछ
लोगो की आवाज आ रही है न? – चौथे (सबसे पीछे वाले) मित्र ने कहा l
लगता
है गांव के नजदीक आ गये - मैंने कहा l
पर
आवाज तो पीछे से आ रही है - तीसरे (मेरे पीछे वाले ) मित्र ने कहा l
हमने
पीछे पलट कर देखा - पीछे चार परछाई दिखाई दे रहे थे lअरे ! दो तो वही है और दो कहाँ
से आ गए -तीसरे (मेरे पीछे वाले ) मित्र ने कहा l लगता है वे पहले से ही चार थे? हम
उन्हें बेवकूफ समझ रहे थे और उन्होंने हमें बेवकूफ बना दिया - चौथे (सबसे पीछे वाले
) मित्र ने कहा l हाँ? और शायद वे मशाल की रौशनी देखकर हमारे पीछे -पीछे ही आ रहे है
- पहले (आगे पीछे वाले ) मित्र ने कहा l
हम
धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे और वे हमारे पीछे-पीछे और हमारे करीब आ रहे थे l कि अचानक
हम सब चौंक पड़े - क्योकि सामने से कुछ लोग आ गए थे l हम सब डर गए पर संयत बनाये हुए
थे l और उनकी आवाज ने हमारे डर को भगा दिया l वे सब कह रहे थे - आइये -आइये हम सब
आप ही का इंतजार कर रहे थे l उनके इस प्रकार के आतिथित्य
सत्कार से हम सब असमंजस में पड़ गए की ये सब हमें कैसे पहचानते है हम प्रश्न वाचक दृष्टि से उन्हें देखने लगे तो उसका भेद उन्होंने
स्वयं खोल दिया कहा - घबराइए मत पहाड़ी पर जो गुरूजी रहते है न उन्होंने दो दिन पहले ही बता दिया था की आप लोग
आने वाले है l
मेरे मन में
बहुत सारे प्रश्न उठने लगे की दो दिन पहले तो हमें ही ज्ञात नहीं था की हम कही आने-
जाने वाले है, और इन्हें पता चल गया की हम आने वाले है l ये शायद हमारे मित्र ने बताया होगा या ये गुरूजी
का ही प्रताप होगा जो हर पल हमारी सहायता को किसी न किसी रूप में सामने आ जाते है,
मैं मन ही मन गुरूजी का धन्यवाद् किया की उन्हें हमारी कितनी चिंता है और हम है की
व्यर्थ ही उनके ऊपर शंका कर रहे थे l और जब
सोच टूटी तो ये क्या? हमारे साथ-साथ वे उन चारों का भी स्वागत
कर रहे थे शायद गाँव वाले सोच रहे थे की वे चारों भी हमारे ही साथ है l वे चारों हमें
देख-देखकर मुस्कुरा रहे थे और हम चाह कर भी उन्हें रोक नहीं पा रहे थे l उन्होंने हमें
चारपाई पर बैठाया और पानी लाकर दिया l हमने प्यास बुझाने के बाद कुछ देर सुस्ताया फिर
उनसे जाने की अनुमति मांगने लगे तो गांव वाले हमसे रुकने का अनुरोध करने लगे लेकिन
हमारे मना करने पर वे मान गए l
हम
चारों उनसे विदा लेकर चलने लगे और हमारे साथ-साथ वे चारों अजनबी भी हमारे पीछे-पीछे
आने लगे l बस अब बहुत हो चूका? पता नहीं ये
क्यों हमारे पीछे पड़े है? आगे जा कर पता नहीं ये क्या करेंगें? अब तो इनका कुछ करना
पड़ेगा? - मेरे दुसरे मित्र ने कहा l
आपको
तो मन को विचलित करने वाली विद्या आती है न? - मेरे तीसरे मित्र के तरफ संकेत करते
हुए मेरे दुसरे मित्र ने कहाl आती तो है पर उसका असर बस एक या दो मिनट के लिए ही होता
है - मेरे तीसरे मित्र ने कहा l तब तो एक बार उसका परिक्षण कर ही लेते
है सब ने हामी भरी l तो ठीक है जैसे ही मैं
मंत्र पढूंगा हम सब मौन होकर आगे की ओर दौड़ेंगे और आगे की मोड़ से पुनः पीछे की ओर दौड़ते
हुए पीछे की मंदिर के आड़ में आकर छिपंगे, वे समझेंगे की हम आगे बढ़ गए है - तीसरे मित्र ने समझते हुए कहा l
हम
सब राजी हो गए और उसके निर्देशानुसार आगे दौड़ने लगे वे चारों भी हमारे पीछे-पीछे दौड़ने
लगे l हम निर्देशानुसार मोड़ से पीछे की ओर दौड़ने लगे और वे आगे ही आगे दौड़ रहे थे
l हम आकर मंदिर में छिप गए, वे आगे ही बढ़ते चले गए lकुछ देर तक हम यु ही मौन मंदिर
के आड़ में छिपे रहे, हमारी नजर रह रह कर रास्तों पर जा रही थी l हमें जब पूरी तसल्ली
हो गया की वे जा चुके है तब हम बाहर निकल आये और आगे बढ़ने लगे पर क्या देखते है की
वे वापस हमारी तरफ ही आ रहे है l हमारे सारे किये कराये पर पानी फिर गया था l हम पुनः
उनकी नजरो में कैद हो चुके थे, सबकी नज़रों में एक प्रश्न झलक रही थी लेकिन कोई कुछ
बोल नहीं रहा था एक बार फिर हम मौन होकर आगे बढ़ रहे थे और वे मुस्कुराते हुए हमारे पीछे-पीछे आ रहे थे
l हैरान वाली बात ये थी की अभी तक उन्होंने
हमसे न तो कोई बात की थी न ही कोई चोट पहुचाई थी तो आख़िरकार उनका उद्देश्य क्या है
यही सब सोचते-सोचते हम आगे बढ़ रहे थे l चलते-चलते हम एक बड़े से मैदान में पहुँच गए,
तभी एक प्रकाश से सारा मैदान प्रकाशित हो उठा और उस प्रकाश के मंद पड़ते ही वहां पर
एक दिव्य विमान सहित चार दिव्य युवतियों दिखाई देने लगी l हम विस्मित होकर उन्हें देखे
जा रहे थे, पलट कर हमने उन चारो को देखा वे अब भी मुस्कुरा ही रहे थे l हमें लगने लगा की कही ये चारों भी उनसे मिले हुए
न हो और सब मिलकर हमें कुछ न कुछ नुकसान जरुर पहुंचाएंगे l वे चारों सुंदरियाँ हमारे
पास आकर हमें अपने यौवन और सौन्दर्य से रिझाने की कोशिश करने लगीं l हम और परेशान हो
गए और सोचने पर भी मजबूर हो गए की हो न हो अब हमारे सामने कोई न कोई अनहोनी होने वाली
है, अनहोनी की आशंका से डर कर हमने आपस में कुछ फैसला किया और इस कार्य का भार मेरे
ऊपर आ गया l
मैं
युवतियों के समीप जा कर उनके सामने घुटने टेकते हुए हाथ जोड़कर उनसे याचना करने लगा,
छमा मंगाते हुए मैंने उनसे कहा - हे देवीओं आप तो हमारे माँ सामान है और हम तो पहले
से ही अनहोनी के आशंका से डरे हुए है इस परिस्थिति में पुत्रों के सामने माता का यह
व्यवहार हमें लज्जित कर रहा है कृपया शांत हो जाये और माता की भांति पुत्रों पर आने
वाली मुसीबत से हमारी रक्षा कीजिये l मेरे विनती को सुनकर वे शांत हो गए और पूछने लगे
की तुम सब किस परेशानी में हो l मैंने सारा वृतांत उन्हें कह सुनाया तब उन्होंने मुझसे
कहा चिंता मत करों पुत्र हम तुम्हें मन को विचलित करने वाली एक क्रिया आशीर्वाद स्वरुप
प्रदान करते है l ऐसा कहकर वे चारों उस सुन्दर
विमान में जाने लगे l पर माँ मुझे तो वह क्रिया आपने बताई ही नहीं - उनको रोकते हुए
मैंने कहा l हमारे जाते ही हमारे आशीर्वाद
के प्रताप से वह क्रिया तुम्हारे मन में अपने आप स्थापित हो जायेगा और तुम वहीँ करने
लगोगे l
उनके
जाते ही सचमुच मैं एक क्रिया करने लगा और जब मैंने एक एक कर के चार दिया जलाई l मैंने
देखा की उस दीपक के जलाते ही वे चारों घबरा गए और एक-एक करके धीरे-धीरे वे चारो गायब
हो गए l
पर यह किया? उन चारों के
साथ ही साथ मेरे वे तीन मित्र भी गायब हो रहे है मैं घबरा गया और उस घबराहट ने मुझे
नींद से जगा दिया l
मेरे
मन में प्रश्नों की झड़ी लग गई की मेरा मन कहाँ चला गया था? मैं गुरूजी का कौन सा कार्य कर रहा था? मेरे साथ वे मेरा सहयोग करने वाले तीनो साथी कौन थे? हमारे पीछा
करने वाले चारों कौन थे? वे चारों युवतियां कौन थी? मैंने चार दीपक क्यों जलाये? ये
चार का आकडां आख़िरकार मुझे क्या बताना चाहती है? इन्ही सवालों के जबाव के इंतजार में
..........
आपका
गोकुल कुमार पटेल
(इन
रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार
में l)