तारों
भरी रात में, खामोश थी जमीं,
न
जाने फिर किसके यादों में वो खोई l
दुःख
था उसको प्रियत्तम का शायद,
जो
फिर से बरखा रोई ll
चमक
गया आँसमा भी,
आँखों
से उसकी जब चमकी बिजली l
सिहर
गया धरती का दिल,
दर्द
से जब बरखा चींखी ll
गिरने
लगे उसके आंसू जब,
धरती
पर बाड़ आ गया l
सारी
दुनिया चीखने चिल्लाने लगी,
जाने
कैसा भौचाल आ गया ll
एक
दिन से दो दिन से, तीन दिन बीत गए,
बारिश
फिर भी नहीं थमीं थी l
झांक
कर मैंने उसके चेहरे को देखा,
आँखों
में अब भी वही नमी थी ll
सप्ताह
बीत गया पर, एक पल थमी न वर्षा,
न
एक पल बिजली सोई l
दुःख
था उसको प्रियत्तम का शायद
जो
फिर से बरखा रोई ll
(इन
रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक
बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l )
गोकुल कुमार पटेल
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