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Friday 8 March 2013

फिर से बरखा रोई

फिर से बरखा रोई


तारों भरी रात में, खामोश थी जमीं,
न जाने फिर किसके यादों में वो खोई l
दुःख था उसको प्रियत्तम का शायद,
जो फिर से बरखा रोई ll
चमक गया आँसमा भी,
आँखों से उसकी जब चमकी बिजली l
सिहर गया धरती का दिल,
दर्द से जब बरखा चींखी ll
गिरने लगे उसके आंसू जब,
धरती पर बाड़ आ गया l
सारी दुनिया चीखने चिल्लाने लगी,
जाने कैसा भौचाल आ गया ll
एक दिन से दो दिन से, तीन दिन बीत गए,
बारिश फिर भी नहीं थमीं थी l
झांक कर मैंने उसके चेहरे को देखा,
आँखों में अब भी वही नमी थी ll
सप्ताह बीत गया पर, एक पल थमी न वर्षा,
न एक पल बिजली सोई l
दुःख था उसको प्रियत्तम का शायद
जो फिर से बरखा रोई ll


(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक  बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l )

गोकुल कुमार पटेल 

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