सपना है या अनुभूति - 9
प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने में पेड़ पौधों का जितना योगदान
है उसकी व्याख्या कर पाना असंभव है l पेड़ पौधों से धरा जब सजती है तो पकृति का हर प्राणी
मन्त्रमुग्ध हो उसकी खूबसूरती की ओर सहज ही खींचे चले आते हैl कहा जाता है पृथ्वी में
जितने प्रकार के जीव जन्तु है उतनी ही प्रकार के
पेड़ पौधे की किस्में भी पाई जाती है
देखा जाये तो हर एक कदम पर एक नए किस्म के पेड़-पौधे देखने को मिल जाती है l
जब भी कोई नया किस्म का पेड़ पौधे मिल जाये तो बरबस ही निगाहे उसकी और खींची चली जाती
है l ऐसा ही मेरे साथ हुआ हमारे गांव के तालाब के मेढ़ पर एक नया किस्म का पेड़ उग आया
था और मेरी निगाहे हमेशा उसकी और टकटकी लगाये रहती थी l कई लोगो से मैंने पूछा की यह
कौन सा पेड़ है? पर कोई इसे जामुन कहता, कोई इसे चीकू बताता, कोई इसे आम का पेड़ ही कहता
था l तो कोई इसे जंगली पेड़ है कहकर चलता बनता था l सबके अलग-अलग जबाब से मैं परेशान
हो गया l इसीलिए अब तो बाकि लोगो से मैंने पूछना ही छोड़ दिया l लेकिन मन है की मानता
ही नहीं था l आते जाते रह रहकर मेरी आँखें
उस तरफ चली ही जाती थी और मैं मन मसोसकर रह जाता था l किसी को यह नहीं पता था कि यह
कौन सा पेड़ है तो इसे यहाँ लगाया किसने? या फिर यह यहाँ आया कैसे? कई इस तरह के सवाल
थे जिनका जबाब मुझे नहीं मिल पा रह था l जब भी मेरी नजर उस पेड़ कि तरफ जाती मैं बेचैन
हो उठता था लेकिन मैं यह भी समझ गया था की इसका जबाब कोई नहीं दे सकता है और जब तक
इसमें फुल या फल नहीं लग जाते तब तक इसके बारे मैं पता भी नहीं लगाया जा सकता है l
इसलिए मैंने मन में ठान लिया कि मैं इंतजार करूँगा तब तक, जब तक इसमें फुल और फल नहीं
लग जाते l
मौसम करवट बदल रहा था, बसंत आ रहे थे, जा रहे थे, पतझड़ आ रहे थे, जा रहे थे ऐसे करते-करते न जाने
कितने साल व्यतीत हो गए l वह छोटा सा पौधा
अब पेड़ बन गया था लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ कि मेरी निगाहें उस पर न पड़ी हो l एक दिन
मैं उसके पास से गुजर रहा था कि मेरे पैर अचानक से रुक गए आखें खुली कि खुली ही रह
गई l धड़कन तेज चलने लगी होंठों पर एक मुस्कान तैरने लगी और मन कहने लगा कि अब मेरा
इंतजार ख़त्म होने वाला है उस पेड़ कि टहनियों पर काली-काली, पतली-पतली, लम्बी-लम्बी
रेशा युक्त टहनी निकल आये थे जो मेरी जिज्ञासा और बढ़ा रहे थे l क्योकि मुझे पता नहीं
चल पा रहा था कि ये फुल है या फल, बहरहाल सब्र कर रहा था कि इंतजार करते-करते इतने
दिन हो गए है तो कुछ दिन और सही, जैसे -जैसे दिन पर दिन बीत रहा था उन पतली टहनियों
पर धीरे-धीरे काली-काली कलियों का आगमन हो रहा था l पर पता नहीं मेरी बेचैनी थी या फिर कलियों का विकास ही रुक गया था, क्योकि सामान्यतः
सभी पेड़-पौधों में कलियों से फुल खिलने में तीन से चार दिन लगता है पर यहाँ तो एक सप्ताह
बीत गया था लेकिन उन कलियों में फुल नहीं आया था l शनैः -शनैः समय का चक्र चलता जा
रहा था और दस दिन बीत जाने के बाद अब जाकर कहीं उन कलियों पर गुलाबी रंग के छोटे-छोटे
पंखुड़ियों का आगमन हो रहा था l
अब तक गांवों में वह पेड़ कौतुहल का विषय बन गया था सभी आपस में
चर्चा कर रहे थे कि यह कौन सा पेड़ होगा l ऐसा पेड़ तो कहीं देखा ही नहीं है, तो कोई
कह रहा था कि देखा क्या मैं तो कहता हूँ ऐसा पेड़ कहीं है ही नहीं l पंखुडियां बढ़ गई
पर पूरी तरह से फुल नहीं बन पाई l कुछ दिन
बाद मैंने देखा की वे गुलाबी-गुलाबी पंखुडियां नीचे गिरे पड़े है मेरी नजर ऊपर टहनियों
की तरफ गई तो मैं असमंजस में पड़ गया क्योकि पंखुड़ियों के नीचे का काला सिरा जिससे फल
बनाना चाहिए था गायब है l मेरी नजर पुनः नीचे
जमीन पर आकर इधर-उधर वह काला वाला हिस्सा तलाशने लगी की वह हिस्सा कहीं तो मिलेगा पर
सारी मेहनत बेकार वहां कुछ रहेगा तो ही तो कुछ मिलेगा l तो फिर आख़िरकार वह हिस्सा गया कहाँ? क्या उसे कोई
और उठा कर ले गया? पर इतनी सुबह तो कोई उठता नहीं है फिर कैसे कोई ले जा सकता है l
मेरे मन में ऐसे ही कुछ सवाल घर कर गए l मैंने सोचा की आज रात मुझे यही रहकर देखना
पड़ेगा की पंखुडियां ही गिरती है या पंखुड़ियों के साथ फल भी गिरता है l और पंखुड़ियों
के साथ फल गिरता है तो जाता कहाँ है?
शाम होते ही आज मैंने जल्दी खाना खा लिया और एक पानी का बोतल
लेकर उसी पेड़ के समीप स्थित मंदिर के आड़ में दुबककर बैठ गया l चांदनी रात थी, फिर भी मुझे डर लग रहा था क्योकि साथ देने के लिए
मेरे साथ कोई नहीं था चारों तरफ सन्नाटा छाया
हुआ था और अब जाकर मुझे अपनी गलती का एहसास होने लगा था l सोच रहा था कि साथ में किसी दोस्त को भी ले आना
चाहिए था l लेकिन लाता भी किसे क्योकि सभी दोस्तों को मैं बखूबी जानता था मेरे लाख
कहने पर भी सभी कोई न कोई बहाना बना कर मुकर जाते l पर कोशिश तो करनी ही चाहिए था मैंने
तो वो भी नहीं की और अब पछताने से क्या लाभ जब चिड़िया चुक गई खेत l झींगुर की आवाज
और निशाचरों की चलने की सरसराहट ने माहौल को
डरावना बना दिया था l
कभी मेरी निगाहें हाथ कि घडी पर जाती तो कभी उस पेड़ कि तरफ उठती
ऐसे करते-करते मैंने आधी रात बीता दिया था पर अभी तक कुछ भी घटित नहीं हुआ था
l आँखें थक चुकी थी और विश्राम पाने के लिए
आँखों की पलक को लगातार झपकने लगी थी तभी अचानक मैंने देखा कि उस पेड़ से कुछ गिर रहा
है l मैं सहसा उठ खड़ा हुआ और पेड़ की उस भाग की तरफ लपका जिधर कुछ गिरते हुए देखा था
पर वहां फुल की कुछ पंखुडियां गिरी पड़ी थी मैं नजरे ऊपर उठाकर पेड़ की तरफ देखने लगा
तब जो नजारा मैंने देखा वह मेरे दिल वो दिमाग को झंझोर कर रखा दिया l मुझे विश्वास
नहीं हो रहा था की क्या ऐसा भी हो सकता है कि पेड़ से वे फल और पंखुडियां एक साथ गिर
रही हो और गिरते -गिरते फल से पंखुडियां अलग हो जाती हो और और फल में अचानक पंख लग
जाते हो और जमीन पर गिरने से पहले ही वह पक्षी बन कर उड़ने लग जाती हो l वह नजारा मुझे
विस्मित किये जा रहा था, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था और मैं कुछ सोचने कि कोशिश करूँ
उससे पहले ही एक फल मेरे सामने गिर और वह पक्षी बन गया और मेरी तरफ झपटने लगा उसकी लाल -लाल आँखें देखकर मैं चौंक गया और
वही किया जो उस परिस्थिति में हर एक इन्सान करता डर से मैंने आँखें बंद कर ली पर डर
का वह पल मेरे धड़कनों कि रफ़्तार तेज कर दी
थी जब धड़कनें सामान्य गति से चलने लगी तो मैंने देखा कि चांदनी रात अब अमावस्या कि
काली रात बन गई है चारों तरफ अँधेरा ही अँधेरा नजर आ रहा था l आँखों पर जोर दिया तो पाया कि मैं बिस्तर में लेटा
हुआ हूँ l तो क्या यह एक भयानक सपना था? क्या सपने ऐसे भी हो सकते है? या फिर यह मेरे
मन में छिपे किसी सोच का असर है? बचपन में हमने पढ़ा था कि एक ऐसा पेड़ भी होता है जिससे
रस निकल है और मिस्र नदी में गिरकर बतख बन जाता है l तो क्या बचपन के दिनों में पढ़ी
हुई घटना सपना बनकर दृश्यांकित हुआ? या फिर
यह कुछ और है? जो भी हो इस amazing tree के सपने ने मुझे रोमांचित कर दिया है l
(इन
रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार
में l)
आपका
गोकुल कुमार पटेल
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