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Friday 13 April 2012

दिन



दिन

सुबह हुआ सूरज निकला,
सबेरे सबेरे तालाब में फुल खिला l
भौंरें भी गुनगुनाने लगे,
गाने लगे प्यार के तराने l
सूरज की किरणों से धरा हुई सरोबोर,
शुरू करने लगे सब अपना कारोबार l
बजने लगी मंदिर की घंटी,
माँ चिल्लाने लगी उठो, पिंकी बंटी l
सुबह सुबह दरवाजे पर फेंक दिया अखबार,
नहा धोकर हो जाओ तैयार l
करके प्रभु को प्रणाम,
करो शुरू तुम अपना काम l
काम में हो के तुम लीन,
फुर्ती से गुजारो अपना दिन l
दिन को हर पल बर्फ जैसे पिघलना है,
समय की हर कड़ियों को हमें मजबूती से पकड़ना है l
शाम हुई अब तो, सूरज को भी ढलना है ,
चलो घर चले, कल फिर हमें अपना काम करना है l


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Wednesday 11 April 2012

माही


     माही


विश्वकर्मा पूजन के एक दिन पूर्व l
खुशियाँ मिली हमें अपूर्व ll
१६ सितम्बर २००९ की रात l
शंकित से बैठे थे सब एक साथ ll
अजीब सी बेचैनी थी, अजीब सा हाल था l
दिन ढल चुकी थी बज गए थे सातll
परिचायिका ने आकर कही ये बात l
रिश्तो की मिली है हमें अनूठी सौगात ll
खुशियाँ लेकर गुडिया आई है l
मुट्ठी में समेटकर प्यार लाई है ll
सबकी लाडली  बिटिया प्यारी l
तारों सी चमके आँखें तुम्हारी ll
गुलाब की कोमल नाजुक सी कली l
हँसे तो टपके मिश्री की डली ll
मनमोहक सी तुम्हारी शोख अदाएं l
देखकर लेते सब तुम्हारी बलाएँ ll
सबकी आशीष और दुआ ऐसा काम करेगी l
कलेक्टर बनकर तू दुनियां में नाम करेगी ll
बढ़ायेगी तू माँ बाप की आन बान शान l
प्यार से मिलकर सबने रखा माही उसका नाम ll

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Tuesday 10 April 2012

White Palash


सफेद पलाश 



पलाश का वृक्ष वैसे तो सर्वत्र पाया जाता है, यह एक मध्यम आकार का वृक्ष है इसके तने की छाल मोटी और गांठदार होती है, नई-नई शाखाएं रोम युक्त होती है, पत्ते हरे हरे मोटे गोलनुमा तथा तीन तीन पत्तो के समूह में विभक्त रहते हैं। पलाश तीन प्रकार का होता है। एक तो गहरे लाल नारंगी रंग के फूलों वाला, दूसरा पीले रंग के फूलों वाला और तीसरा सफेद रंग के फूलों वाला, सफेद फूलों वाला पलाश अब दुर्लभ हो चला है और कहीं कहीं बड़ी मुश्किल से ही दिखाई पड़ते है। सफेद फूलों वाले पलाश को औषधीय दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी माना जाता है। पलाश को हिंदी में ढाक, टेसू छत्तीसगढ़ी में परसा तथा उड़िया में पोरासु कहा जाता है। 

माघ माह में ऋतुराज वसंत का जैसे जैसे आगमन होता है वैसे ही पलाश की शाखाओं पर काले रंगों का पुष्प कलिकाएँ गुच्छों के रूप में प्रकट होने लगते है। फुल तोते की चोंच की तरह टेढा तथा दूर से देखने पर आग की लपटों की जैसे दिखाई पड़ती है। फागुन में जहाँ सारे लोग भेदभाव मिटाकर रंगों से बसंत का त्यौहार होली मानते है, तो पलाश का यह वृक्ष भी फूलों की चादर ओढ़ प्रकृति को रंगीन कर होलिकोत्सव में शामिल हो जाता है ।

  
आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से हिन्दू धर्म में पलाश के वृक्ष का बहुत महत्व है इसके वृक्ष को ब्रम्हा विष्णु व महेश का निवास स्थान माना जाता है कार्तिक माह में इसके सूखे हुए फुल देवी देवताओं को चढ़ाया जाता है तथा लकड़ी से हवन करना भी सर्वोतम माना जाता है । पलाश के पत्तों का उपयोग पत्तल और दोने बनाने में भी खूब किया जाता है।

तांत्रिक क्रियाओं में पलाश के फूलों से तांबे को सोना बनाना, लक्ष्मी प्राप्ति की साधनाएँ तथा इसके कल्प से शरीर का कायाकल्प करना व त्रिकालदर्शी साधनाओं (तीनो कालों वर्तमान भुत व भविष्य को जानने वाला) की पद्धतियों का वर्णन भी किया गया है।

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भी पलाश के अनेक गुण बताए गए हैं और इसके फूल, बीज और जड़ से अनेक प्रकार की दवाइयां बनायी जाती है इसके फूलो से होली के रंग तैयार किये जाते हैं जो त्वचा के लिए काफी लाभप्रद होता है। जहाँ एक ओर बीज और जड़ से पुरुषों के नपुंसकता का इलाज होता है, तो दूसरी ओर इससे महिलाओं के बाँझपन और मासिकस्त्राव सम्बन्धी अनियमितताओं के लिए दवाइयां भी बनायीं जाती है।


सामान्य तौर पर लाल पीले रंग के पलाश के वृक्ष और सफ़ेद पलाश के वृक्ष में अंतर सिर्फ फूलों को ही देखकर किया जाता है पर हम अगर ध्यान से देखे तो पायेंगें की सफ़ेद पलाश के वृक्ष के डंठल और तने के मध्य एक उठा हुआ भाग दिखाई देता है जिसे शिवलिंग कहते है।  यह  चिन्ह सिर्फ सफ़ेद पलाश के वृक्ष में पाया जाता है, लाल व पीले रंग के पलाश के वृक्ष में नहीं जिसे देख कर हम सफ़ेद पलाश के वृक्ष की पहचान कर सकते है।  

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Sunday 1 April 2012

गए ये कैसे भूल


गए ये कैसे भूल


हँसना भुला दिया है तुम्हारी खौप ने,
वीरान सा बना दिया है गुलशन को,
बहारें ही न हो गुलशन में, 
तो कैसे खिलेंगें, कैसे महकेंगें फुल l
तुम्हारे ही डर से नहीं खिल रहे है फुल l
गए ये कैसे भूल ll
अधिकारों कर्तव्यों से मुह मोड़कर, 
जाने किस सिद्धांतों में उन्मत हो, 
संस्कृतियों को रौंद रहे हो अपने ही पैरो से, 
पूरा देश आतंकित है तुम्हारे आंतकों से,
तुम्ही ने गन्दा किया है समाज को,
और उड़ा रहे हो दुश्मनी का धुल l  
गए ये कैसे भूल ll
गाँधी, सुभाष और जवाहर मिट गए है,
तो समझते हो, हो गया गुंडाराज,
भूल गए उन जवानों को,
जिनको है आज भी देश पर नाज,
तेरे चहरे को भी वो पहचान गए है, 
कत्लेआम वो भी कर सकते है, 
पर उन्हें देश से प्यार है, 
चुप है तो बस इसलिए, 
क्योकि उन्हें समय का इंतजार है, 
चुभ रहे हो सीने में, तुम्ही बन के शूल l  
गए ये कैसे भूल ll
मत भूलो जिस शक्ति, जिस जवानी का तुम्हे घमंड है,
वो सिर्फ दो दिन का मेहमान है,
ढली जवानी हो जाओगे बरबाद,
अब भी समय है तुम्हारे पास,
बदल दो अपने आप को, बदल दो गन्दा समाज,
सब रहो मिलजुल, 
विद्रोह, दुश्मनी जाओ तुम भूल l
तुम ही तो हो इस देश का,
परिवार, कुटुंब और कुल, 
गए ये कैसे भूल ll



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