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Monday 1 October 2012

सपना हैं या अनुभूति -6


सपना हैं  या अनुभूति -6


रे भरे पेड़ों से पूरा जंगल सुशोभित हो रहा था और उन्हीं जंगलों के बीच पत्थरों की बड़ी बड़ी चट्टानें थी जिनको तोड़कर शायद सुरंग बनाया गया था l  ऐसा एक ही नहीं तीन चार द्वार दिखाई दे रहे थे l सामने बड़ा सा समतल मैदान आँगननुमा जान पड़ रहा था, उसी आँगन के एक किनारे में लकड़ी के एक चारपाई पर सफ़ेद वस्त्र पहने एक वृद्ध बाएं करवट में लेटे हुए थे l उन्होंने अपने गले में एक रुद्राक्ष की माला पहन रखी थी, उनके आँखों की चमक, चेहरे की ओज और कांतिमय शरीर से वे सदगुरुदेव लग रहे थे l उनके चारपाई के कुछ फासले पर ही मैं और मेरा एक सहपाठी पालथी मारे बैठे हुए थे, वे हमें कुछ ज्ञान की बातें बतला रहे थे l 

अचानक उन्होंने हमें आदेश देते हुए कहा - तुम दोनों खड़े हो जाओं l

हम दोनों ही उनके आदेश का पालन करते हुए तत्परता से खड़े हो गए, उन्होंने हाथ से सामने कुटिया की तरफ इशारा करते हुए कहा – वत्स ! जाओ वहां तुम दोनों के लिए कुछ रखा हुआ है l हम दोनों खुश  हो गए और प्रसन्नतापूर्वक दौड़ते हुए कुटिया के अन्दर चले गए l कुटिया के अन्दर हम दोनों ने पूरी निगाह दौड़ाई पर कुटिया खाली था, वहां हमारे लायक कुछ भी न था, हम मन में निराशा लिए वापस आ रहे थे की अचानक याद आया की कुटिया के दिवार में कुछ लटका हुआ था l हमने सोचा - कहीं वहीँ तो हमारे लिए नहीं है? हमने तय किया की कही गुरूजी उसी की बात तो नहीं कर रहे थे, इसलिए फिर से हम कुटिया के अन्दर आ गए l

देखा - दीवार पर दो तलवार लटकी हुई है, दिखने में दोनों तलवारें एक ही लम्बाई के, एक ही सामान दिखाई दे रहे थे l अंतर था तो सिर्फ रंग का एक लाल रंग का था,  एक सफ़ेद रंग का था, हम दोनों ने एक-एक तलवार उठा लिए l अगले ही पल हम दोनों के हाथो में एक-एक तलवार था मेरे हाथ में सफ़ेद रंग का और मेरे मित्र के हाथ में लाल रंग का तलवार सुशोभित होने लगा l हमने तलवार म्यान से खीच कर बहार निकाला तो देखा की जो म्यान लाल रंग का था उसका तलवार भी लाल रंग का है और जो म्यान सफ़ेद रंग का था उसका रंग भी सफ़ेद ही था l 

 हम तलवार हाथ में थामें गुरूजी के पास वापस आये l पर चारपाई खाली था, गुरूजी चारपाई में नहीं थे l हमने कुछ देर वहीँ प्रतीक्षा की लेकिन गुरूजी को गए काफी समय व्यतीत हो गया अब हमें और प्रतीक्षा करना मुश्किल हो रहा था l  हम उन्हें उन सुरंगनुमा कुटिया में तलाशने की कोशिश की पर वे हमें कहीं भी नहीं मिलें l  अब हम दोनों ने तय किया और उन्हें तलाशने के लिए अलग-अलग दिशाओं का चयन कर निकल पड़ें l हम गुरूजी को तलाशते हुए आगे बढ़ रहे थे और हमारा फासला भी बढ़ रहा था l

मैं गुरूजी के तलाश में बहुत आगे निकल आया, चारों तरफ नजरें दौड़ाया लेकिन कहीं भी गुरूजी दिखाई नहीं दे रहे थे l शायद वे हमें छोड़कर चले गए थे? शायद वे अंतर्ध्यान हो गए थे? और छोड़ गए थे कुछ अनसुलझे प्रश्न जैसे वह जगह कौन सी थी?  गुरूजी के वेश में वे कौन थे? हमें वे कौन सी शिक्षा दे रहे थे? मेरे साथ मेरा मित्र था वो कौन था? मेरे हाथों में सफ़ेद तलवार क्यों आई?  मेरा वह मित्र कहाँ गया? ऐसे ही न जाने कितने सवाल मेरे जहन में अब भी उठते है जिनका उत्तर ढुंढने की कोशिश में मैं अब भी भटक रहा हूँ l


गोकुल कुमार पटेल



(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l)

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