सपना है या
अनुभूति – 2
मैं
सदगुरुदेवजी के चरणों में नतमस्तक हुए बैठा
था गुरुदेव मुझे आध्यात्मिक शक्तियों के बारे में बता रहे थे जिनको प्राप्त कर मनुष्य की जीवन शैली में परिवर्तन लाकर अपने समस्याओं
और कष्टों का निवारण भी कर सकता था l वे
मुझे एक एक करके गुण रहस्यों के बारे में बता रहे थे, और मैं मंत्र मुग्ध सा उनके मुख
मंडल को निहारे जा रहा था, मैं मन ही मन सोच रहा था की गुरुदेव मेरे इतने समीप थे और
मैं बेकार ही उनको यत्र-तत्र ढूंढ़ रहा था l मैं भाव विभोर हो उठा - और आखिरकार मेरे
मन की बातों को मेरे आँखों ने छलक कर गुरूजी
को कह ही दिया , मेरे गालों पर लुढ़कते आसुओं को देखकर गुरूजी ने मुझसे पूछा
क्या हुआ बेटा? तुम्हारे आँखों में आसूं ? उनके इतना कहते ही मैं मन की पीड़ा को रोक
न सका, मेरे आँखों में आसुओं का सैलाब सा उमड़ पड़ा, मेरा गला भर आया और मैं फुट फुटकर
रोने लगा l
गुरूजी
ने मेरी पीठ थपथपाते हुए ढीढस बंधाते हुए मेरे रोने का कारण पूछने लगे, मैंने आसूं
पोछते हुए रुआँसे होकर उनके चहरे को देखते हुए कहा- आप इतने दिन तक कहाँ थे, उनके चहरे
पर मंद मंद मुस्कान तैर गई, और मुस्कुराते हुए बोले - मैं तो हर क्षण तेरे पास ही था,
तेरे मन में था और तेरे हर दुःख से हर विपत्तियों में बचाकर तुझे सच्ची रह दिखा रहा
था, वह मैं ही तो था, पर तू ही मुझे पहचान
नहीं पाया? पर ये कैसे हो सकता है की आप मेरे
साथ हो और मैं आपको पहचान नहीं पाऊ- मैंने असमंसस स्वर से उनको पूछा? बड़े ही सयंत
स्वर में उन्होंने जबाब दिया - ये तेरे कुछ पुनर्जन्म के और कुछ इस जन्म के दोष थे
जिसके कारण मैं तेरे इतने पास होते हुए भी तू मुझे पहचान नहीं पा रहा था, मैं आत्मा
ग्लानी से भर गया आंसुओं की धारा तीव्र हो गई l तब, गुरुदेव ने मेरे आसुं पोछते हुए
कहा - अब रोना छोड़? देख तेरे दोष तेरे इन आंसुओं से धुल गए है और तेरे लिए ही तो मैं
यहाँ आया हूँ तेरे अटूट प्यार श्रद्धा और विश्वास
ने मुझे तुझसे साक्षात्कार करने पर मजबूर कर ही दिया l मैंने
अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा - मुझसे दूर तो नहीं होंगे? गुरुदेव बोले बेटा हर
पल ही तो मैं तेरे साथ हूँ जब जब तू याद करेगा मुझे साथ ही पायेगा l
मैं
सदगुरुदेवजी के चरणों में नतमस्तक हो कर प्रणाम
किया , और जैसे ही मैंने नजरें उठाई देखा गुरूजी के चेहरे पर वही मुस्कान थी वे मंद
मंद मुस्कुरा रहे थे और उनकी छवि धीरे धीरे धुंधली होती जा रही थी, मैं सहसा उठ बैठा
और देखा की गुरुदेव मेरे कमरे के दरवाजे में पूर्ण रूप से समाहित हो गए थे मैंने उनको
पुनः सर झुका कर प्रणाम किया l
मैंने
घडी पर नजर दौड़ाई देखा रात के २:५६ मिनट हुए है मैं बिस्तर पर लेट गया, और एक बार फिर मेरे आँखों में आसूं की धारा उमड़
पड़ी लेकिन ये आसूं सदगुरुदेव से विछुड़ने का नहीं था ये आसूं तो मुझे बोध करा रहे थे,
एहसास दिला रहे थे मेरे दोषों का क्योकि अभी तो उनका साक्षात्कार सिर्फ सपने में हुआ
है, पता नहीं कब मेरे दोषों का अंत होगा या होगा भी या नहीं? मेरी साधना मेरी पुकार
उनको बुला सकती है या नहीं? मैं कभी उनका साक्षात्कार
कर पाउँगा भी या नहीं? ऐसे बहुत सारे सवाल मेरे मस्तिक में कौंध रहे है l
अक्सर ये सवाल मेरे जहन में हिलोरे लेती रहती है , और विरह की यह वेदना आँखों से छलक
जाया करती है l
सदगुरुदेव
से मिलने की आस में ............
(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक
बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l)
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