माही
विश्वकर्मा पूजन के एक दिन पूर्व l
खुशियाँ मिली हमें अपूर्व ll
१६ सितम्बर २००९ की रात l
शंकित से बैठे थे सब एक साथ ll
अजीब सी बेचैनी थी, अजीब सा हाल था l
दिन ढल चुकी थी बज गए थे सातll
परिचायिका ने आकर कही ये बात l
रिश्तो की मिली है हमें अनूठी सौगात ll
खुशियाँ लेकर गुडिया आई है l
मुट्ठी में समेटकर प्यार लाई है ll
सबकी लाडली बिटिया प्यारी l
तारों सी चमके आँखें तुम्हारी ll
गुलाब की कोमल नाजुक सी कली l
हँसे तो टपके मिश्री की डली ll
मनमोहक सी तुम्हारी शोख अदाएं l
देखकर लेते सब तुम्हारी बलाएँ ll
सबकी आशीष और दुआ ऐसा काम करेगी l
कलेक्टर बनकर तू दुनियां में नाम करेगी ll
बढ़ायेगी तू माँ बाप की आन बान शान l
प्यार से मिलकर सबने रखा माही उसका नाम ll
(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l)
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