Security

Monday 16 January 2012

कली

कली

ऐ कली ठहर जरा, 
अभी सबेरा हुआ नहीं,
आंसमा की चादर ओढ़े सूरज सो रहा है,
भोर गीत गाकर,
किसी ने अब तक उसे जगाया नहीं l 
ऐ कली …………………………..जगाया नहीं ll
अँधेरा भी जग रहा है,
चाँद तारे भी जग रहे है,
झींगुर भी सिटी बजाकर,
रखवाली तेरी कर रहा है,
जग रहा है उल्लू अभी, 
जम्हाई उसे भी आया नहीं l
ऐ कली …………………………..जगाया नहीं ll
प्रहर करवट बदल रहा है, 
ब्रहम मुहूर्त अभी आया नहीं,
पक्षियों ने अभी चहचहया नहीं, 
पंख अपना फडफडया नहीं,
खिल गया अगर तू अभी, 
पंखुड़ी तेरे झुलस जायेगें
शीतल, मधुर, ठंडी पवन,
पूरब ने अभी बहाया नहीं l
ऐ कली …………………………..जगाया नहीं ll
बिखर जायेगें फिर खुशबू तेरे,
तितली भी पास नहीं आयेगा, 
भौंरा भी मौन हो जायेगा,
मधुर गीत फिर कोई गुनगुनायेगा नहीं,
ऐ कली …………………………..जगाया नहीं ll


(इन रचनाओ पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शक बन सकती है, 
आप की प्रतिक्रिया के इंतजार में l)

No comments: